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'एक पथिक का स्वप्न' तथा 'सम्मान किसे कहते हैं?' कथायुग्म 'छत्तीसगढ़मित्र' के मार्च-अप्रैल, सन् १९०० के एक ही अंक में प्रकाशित की गई हैं। इन दो कहानियों की संदृष्टि भारतीय समाजवादी मानवतावाद पर जाती है जहाँ मानव स्वतन्त्रता के नये आयामों की कहानी में सृष्टि करता है, यथा––व्यक्ति के जन्मसिद्ध अधिकार की संचेतना, शोषणमुक्त मानव-समाज की संरचना के साथ संघर्ष के स्थान पर समन्वय की भूमिका।
'एक पथिक का स्वप्न' रचना-विधान की दृष्टि से नाटकीय तत्त्वों पर खेलती हुई सत्रह पृष्ठों की लम्बी कहानी है जिसे तीन भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग में नायक का कन्दहार के जंगलों के पशु जगत् से संघर्ष, दूसरे भाग में नायक का खुरासान के ग्राम-प्रान्तर में छिपे नरपशुओं से संघर्ष तथा तीसरे भाग में खुरासान के राजवंश से सम्बन्ध को स्थापित कर नायक के इतिवृत्त को पूरा किया गया है। शौर्य की सच्चाई इसी उन्नीसवर्षीय गरीब तुर्क नायक से प्रतिफलित हुई है। जिगीषा, युयुत्सा और करुणा भाव इस नायक के गुण हैं। कहानी का आरम्भ कन्दहार (प्राचीन गांधार) के घने जंगलों की हरीतिमा से फूटकर निकलता है और स्वच्छन्दता का वातावरण सामने दिखाई देता है। नायक के उत्कर्ष के बाद नायक का परिचय मिलता है कि हिन्दुस्तान के इतिहास में सुबुक्तगीन नाम का जो अत्यन्त प्रसिद्ध बादशाह हो गया, वह यही हमारा गरीब पथिक है। उसी के लड़के महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को मुसलमानों के अधीन किया। वस्तुतः कहानी का यह अन्त ही इस कहानी का आरम्भ है।
'सम्मान किसे कहते हैं?' 'छत्तीसगढ़मित्र' के उसी अंक की दूसरी संवाद-शैली में लिखित राजनैतिक प्रेरणा लिये आत्मोत्सर्ग की चारपेजी कहानी है। इसमें जहाँ राजतन्त्र तथा प्रजातन्त्र राज्यों के पारस्परिक युद्ध का बहिर्द्वन्द्व है, वहाँ अपने स्वराज्य को स्वतन्त्र रखे रहने की महत्त्वाकांक्षा में अन्तर्द्वन्द्व की उपस्थिति भी मौजूद है। सुलियट प्रजा का संघर्ष