पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/९५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नेपाल |91 थापा आदि भेद हो गये हैं । पर गुरुंग जाति में इस भेद-भाव का अभी तक प्रचार नहीं हुआ। गोर्खा लोग पर्वतिया भाषा बोलते हैं। वह संस्कृत में निकली है । जब से हिन्दुस्तानियों का प्रवेश नेपाल में हुआ तभी से इस भाषा की नीव वहाँ पड़ी । नेपाल के पुगने प्रभु नेवार लोगों की भाषा और ही है। उसका नाम नेवारी है । और और जाति वालों में से कुछ तो तिब्बत की भाषा बोलते हैं और कुछ सिकम और भूटान की। गोर्खा लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी है । नेवार लोगों में से कुछ हिन्दू हैं और कुछ बौद्ध । जो हिन्दू हैं वे शैवमार्गी नेवार कहलाते हैं और जो बौद्ध है वे बौद्ध मार्गी नेवार । पर मच पूछिए तो बौद्धमार्गी नेवारों का ठीक ठीक कोई धर्म ही नही । वे हिन्दुओं के देवी-देवताओं को भी पूजते है । और बौद्ध को भी पूजते हैं । लिम्बू, किगती, भोटिया और लेपचा भी बौद्ध है । नेपाल में व्यापार, कारीगरी और कृषि प्रायः नेवार लोगो ही के हाथ में है। नेवाल में साधारण आदमियों का भोजन चावल और तरकारी है । जो ममर्थ हैं वे मास भी खाते है। हिरन और जगली सूअर भी लोग खाते है । नेवार और गुरुंग जाति के आदमी भैस तक खाते हैं । इस देश की तरह नेपाल मे भी लोग खूब बहुविवाह करते है । जो धनी हैं उनको एक से अधिक स्त्रियाँ रखने का अकमर शौक़ होता है । पर विधवा-विवाह का निषेध है । नेपाल में सती की चाल अभी तक बनी हुई है । जब नेपाल के प्रसिद्ध मन्त्री जंगबहादुर की मृत्यु हुई तब उनकी रानी उनके मृत शरीर के माथ सती हो गई । गोर्खा लोगो मे व्यभिचार बहुत निषिद्ध है। इसके लिए स्त्री और पुरुष दोनो को कठिन दण्ड दिया जाता है। पर नेवार लोगों में विवाह-बन्धन और व्यभि वार आदि का विचार उतना कड़ा नही । किमी किसी का मत है कि नेवार जाति की स्त्रियाँ कभी विधवा ही नहीं होती। नेपाल की फ़ौज में पर्वतिया, मगर और गुरुंग लोग ही अधिकता से भरती किये जाते हैं। पर इस देश की अँगरेजी गोर्खा फलटनों में और जाति के आदमी भी ले लिये जाते है । वे सभी गोर्खा कहलाते है । गत एप्रिल में जो भूकम्प हुआ था, उसने धर्मशाला में इसी गोर्खा जाति की एक अँगरेज़ी पलटन के डेढ दो सौ आदमियो का संहार कर डाला था। ये लोग बड़े बहादुर होते हैं । इनकी बहादुरी पर गवर्नमेंट बहुत खुश है । इसी से लार्ड किचनर ने बहुत सा चन्दा इकट्ठा करके मृत गोर्खा लोगों के कुटुम्बियों की सहायता की है । जनरल सेल हिल बहुत दिनों तक गोर्खा पल्टन में रहे है । वे कहते है कि गोर्खा लोग बड़े बहादुर, श्रम-स प्णु, आज्ञाकारी, स्वच्छ-हृदय, स्वाधीन- चेता और आत्मावलम्बी होते है । अपने मुल्क में वे विदेशियों को नहीं घुसने देते, उनसे द्वेष करते हैं । वे अपनी स्त्रियों को बहुत अच्छी तरह रखते है। इसी से स्त्रियाँ भी उनकी खूब सेवा-शुश्रूषा करती हैं । पर ये लोग जरा कुन्दजेहन होते है और कवायद परेड सीखने में अधिक दिन लगाते हैं । जब ये फ़ौज मे भरती होते है तब बहुत मैले रहते हैं । इसलिए इनको सफ़ाई पर सबक़ देना पड़ता है। इनमें जुआ खेलने की बुरी आदर होती ।