पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/७१

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योरप के कुछ संस्कृतज्ञ बिद्वान् और उनकी साहित्य-सेवा / 67 विषयों के ज्ञाता थे। उनका जन्म 1765 ईसवी में, लन्दन में, हुआ था। 18 वर्ष की अवस्था में उन्हें ईस्ट इंडिया कम्पनी में एक नौकरी मिल गई। यहाँ वे 32 वर्ष तक भिन्न-भिन्न पदों पर काम करते रहे। 1807 ईसवी में वे बंगाल एशियाटिक सोसाइटी के सभापति हुए। 1815 ईमवी में वे इंगलैंड लौट गये । वहाँ, 1822 में, उन्होंने लन्दन में रायल एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की। 1837 में उनकी मृत्यु हुई। उन्हीं के परिश्रम से योरप में संस्कृत का विशेष प्रचार हुआ। होरेस हेमन विलसन ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के चिकित्सा विभाग में 1808 से 1832 ईसवी तक काम किया। वे भी संस्कृत के विद्वान् हुए। आक्सफ़र्ड में सबसे पहले वही बोडेन-प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त हुए। फ़ोर्ट विलियम कालेज, कलकत्ता, में रेवरन्ड केरी संस्कृत के अध्यापक थे। वाल्मीकीय रामायण को सबसे पहले प्रकाशित करने का श्रेय उन्ही को है। सर हेनरी मैकनाटन, जो काबुल में मारे गये थे, अच्छी संस्कृत जानते थे। गोर के अन्य देशों की अपेक्षा जर्मनी में संस्कृत का अधिक प्रचार हुआ। फेडिक शेजल नामक विद्वान् ने वहाँ लोगों का ध्यान संस्कृत भाषा के अध्ययन की ओर आकृष्ट किया । उसका भाई अगस्ट डब्ल्यू० शेजल भी संस्कृत का प्रेमी था। उसने जर्मनी में संस्कृत का खूब प्रचार किया। उसने अनेक संस्कृत-ग्रन्थों को जर्मन भाषा में अनुवादित करके प्रकाशित किया। 1818 में वह पेरिस के विश्वविद्यालय में अध्यापक नियुक्त हुआ । उसने अपनी गवेषण पेरिस में आरम्भ की। उमके गुरु थे शेजी । फ्रेंचों में सबसे पहले शेजी ने ही संस्कृत का अध्ययन किया। वह कालेज डी- फ्रांस में संस्कृत का अध्यापक था । वहाँ उसने संस्कृत-माहित्य की बड़ी सेवा की। अनेक भारतीय ग्रन्थों का सम्पादन किया और कुछ के भनुवाद भी। 1823 ईसवी में 'दि इंडियन लाइब्रेरी' नामक पत्र का पहला खण्ड प्रकाशित हुआ। उसम भारतीय भाषा- विज्ञान पर निबन्ध थे। प्रायः सभी शेजल की रचना थी। उसी साल शेजल ने भगवद्गीता का एक अच्छा संस्करण निकाला। 1829 में उसकी रामायण का पहला भाग निकला। पर वह अपूर्ण ही रह गया। शेजल के समसामयिक फ्रेंच विद्वान् वॉप थे। उनका जन्म सन् 1791 ईसवी में हुआ था। 1812 में वे भी पेरिस आये और शेजी के पास संस्कृत पढ़ने लगे। 1816 में बाप ने संस्कृत भाषा के तुलनात्मक विज्ञान पर निबन्ध लिखा । इस विज्ञान के जन्म- दाता वॉप ही थे। उन्होने 'नल-दमयन्ती' के उपाख्यान को लैटिन भाषा मे अनुवाद करके प्रकाशित किया। सबसे पहले उन्होंने ही गगभारतीय उपाख्यानों का अनुवाद जर्मन भाषा में किया। उनका संस्कृत भाषा का व्याकरण 1837 में निकला। उन्होंने एक कोष भी तैयार किया। इन दोनों ग्रन्थों से उनकी अच्छी प्रसिद्धि हुई और इन ग्रन्थों का प्रचार भी योरप में खूब हुआ। डब्ल्यू० हम्बोल्ट (Mr. Humbolt) साहब ने 1821 ईसवी में संस्कृत भाषा का अध्ययन आरम्भ किया। उनसे उनके भाई अलेक्जेंडर हम्बोल्ट का नाम, संस्कृत विषय में, अधिक विख्यात है । तथापि ये भी संस्कृत के ऐसे वैसे ज्ञाता न थे। भगवद्गीता