पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/६८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

64 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली उसकी इस प्रशंसा ने योरप में कालिदास की कीत्ति फैलाने में बड़ा काम किया। शेजी (Chezy) ने 'अभिज्ञान-शाकुन्तल' का अनुवाद फ्रेंच में किया। आर० पीशल (R. Pischal) ने भी आलोचना सहित 'शकुन्तला' का एक अच्छा संस्करण, 1877 में निकाला। उममे वही पाठ-प्रणाली रकबी गई। बंगाल में प्रचलित थी। देवनागरी पाठ- प्रणाली का अनुसरण करके 'शकुन्नला' नाटक के और भी कई संस्करण निकले । एक का प्रकाशन ओ० बोटलिक (O. Boatlink) ने किया। जर्मन भाषा में रुकर्ट ने 1876 में, उसका अनुवाद किया । उपी साल फीटजे का किया हुआ भी अनुवाद निकला। कालिदाम का 'अभिज्ञान-शाकुन्तल' पढकर योरप के विद्वानो का ध्यान संस्कृत- भाषा की ओर आकृष्ट हुआ । सस्कृत भाषा का प्रचार धीरे-धीरे बढ़ने लगा। इसके माथ ही साथ कालिदाम के अन्य काव्यों और नाटकों के अनुवाद भी प्रकाशित होने लगे । कालिदास का 'विक्रमोर्वशी' नामक जो दूसरा नाटक है, उसका सम्पादन करके, 1875 में, आर० पोशल ने उसे प्रकाशित किया। विल्सन और कावेल ने उमको अँगरेजी में अनुवादित किया। कावेल का अनुवाद 1851 में निकला था। 1880 में फीटजे ने लिपजिक से एक अनुवाद निकाला। 'मालविकाग्निमित्र' का अनुवाद, अंगरेजी मे, सी० यच० टाने (C. H. Tawney) ने, 1991 में, किया उसके पहले जर्मन भाषा में ए० वेबर द्वारा उसका एक अनुवाद, 1856 में, निकल चुका था। 'शकुन्तला' नाटक का एक अनुवाद मोनियर विलियम्म ने भी किया है । फीटजे का 'मालविकाग्निमित्र', 1881 में, निकला। कालिदास के काव्यो मे 'रघुवंग' श्रेष्ठ है। हरप्रमाद शास्त्री ने लिखा है कि उममे एक ऐमी विशेषता है जो अन्य किमी काव्य में नहीं पाई जाती। उसमें मुख्य पात्र बीच मे ही लुप्त होते जाते हैं, पर कथा की शृंखला नहीं टूटनी; वह वैसी ही बनी रहती है। 'ग्घवंश' का लैटिन भाषा में अनुवाद करके, 1832 में स्टेजलर साहब ने प्रकाशित किया। उन्होंने, 1838 मे, 'कुमारसम्भव' का भी अनुवाद लैटिन भाषा में किया। ग्रीफिथ माहब का किया हुआ भी 'कुमारसम्भव' का एक अनुवाद अंगरेज़ी में है। वह 1871 में प्रकाशित हुआ था। कालिदाम के काव्यो में 'मेघदूत' की भी बड़ी प्रशंसा है । गेटी तो उमसे मुग्ध हो गया था। स्टेजलर माहब ने, 1874 मे, उमका सम्पादन करके उसे प्रकाशित किया । उनके इस संस्करण में शब्दों की एक सूची भी दी गई। विलसन ने उमका अनुवाद अंगरेजी-पद्यो में किया । वह 1867 में प्रकाशित हुआ। टी० क्लार्क का 'मेघदूत', लन्दन में, 1882 में, प्रकाशित हुआ। मैक्समूलर द्वारा जर्मन भाषा में किया गया, 'मेघदूत' का अनुवाद, 1847 मे, निकला। 1859 में स्कूट्ज़ (Schutz) का और 1879 में फीटजे (Fritze) का अनुवाद निकला। 'ऋतुसंहार' दास का सबसे छोटा काव्य है। वह कदाचित् उनकी प्रथम रचना है। पर उममे भी कवि की प्रतिभा झलक रही है । मुग्धानलाचार्य ने उसकी बड़ी तारीफ़ की है । लैटिन और जर्मन भाषाओं में किया गया उसका अनुवाद पी० वी० म.लि. र..4