सर विलियम जोन्स ने कैसे संस्कृत सीखी / 49 । - बिछवाया गया। एक हिन्दू नौकर रक्खा गया। उसके सिपुर्द यह काम हुआ कि वह रोज हुगली से जल लाकर कमरे के फर्श को, और थोड़ी दूर तक दीवारों को भी, धोवे । दो- चार लकड़ी की कुरसियो और एक लकड़ी के मेज के सिवा और मब चीजें उम कमरे से हटा दी गई । ये चीजें भी रोज धोई जाने लगी। शिक्षा-दान के लिए सवेरे की बेला नियत हुई । पढ़न के कमरे में कदम रखने के पहले सर विलियम को हुक्म हुआ कि एक प्याला चाय के सिवा न कुछ खायें, न पिये । यह भी उन्हें मंजूर करना पड़ा । कवि भूषणजी की यह भी आज्ञा हुई कि गो-मांस, वृष-मांम; शूकर-मास मकान के अन्दर न जाने पावे। यह बात भी कबूल हुई। एक कमरा पण्डितजी को कपड़े पहनने के लिए दिया गया। उसके भी रोज धोये जाने की योजना हुई । पण्डित महाशय ने दो जोड़े कपड़े रक्खे । उनमें से एक जोड़ा इस कमरे में रखा गया। गेज प्रात:काल जिस कपड़े को पहन कर आप साहब के यहाँ आते थे उसे इस कमरे में रख देते थे और कमरे में रक्खा हुआ जोड़ा पहन कर आप पढ़ाते थे । चलते समय फिर उसे बदलकर घर वाला जोड़ा पहन लेते थे। इतने महाभारत के बाद सर विलियम ने 'रामः, रामौ, रामाः' शुरू किया। न सर विलियम सस्कृत जानें, न कविभूपण महाशय अंगरेजी। पाठ कैसे चले ? खैर, इतनी थी कि साहब थोड़ी-सी टूटी-फूटी हिन्दी बोल लेते थे। उसी के मदद से पाठारम्भ हुआ । दोनो ने उसी की शरण ली। सौभाग्य से अध्यापक और अध्येता दोनो बुद्धिमान थे । नही तो उतनी थोड़ी हिन्दी में कभी न काम चलता । सर विलियम ने बड़ी मिहनत की। एक ही वर्ष में वह सरल संस्कृत मे अपना आशय प्रकट कर लेने लगे। संस्कृत में लिगभेद और क्रियाओं के रूप बड़े मुश्किल है। बहुत सम्भव है, पहले-पहल सर विलियम बहुत सी संज्ञाओं और क्रियाओं के रूप काग़ज पर लिख लिये होंगे। उनकी तालिकाये बना ली होंगी। उन्हीं की मदद से उन्होंने आगे का काम निकाला होगा। किस तरह उन्होने पंडित रामलोचन से संस्कृत सीखी, कही लिखा हुआ नहीं मिलता। यदि उनकी पाठ-ग्रहण-प्रणाली मालूम हो जाती तो उसे जानकर ज़रूर कुतूहल होता। एक दिन सर विलियम जोन्स पण्डित महाशय से बातचीत कर रहे थे। बातों बातों में नाटक का जिक्र आया। आपको मालूम हुआ कि संस्कृत मे भी नाटक के ग्रन्थ है। उस समय भी कलकत्ते में अमीर आदमियो के यहाँ नाटक खेले जाते थे। अँगरेज़ो को यह बात मालूम थी। पण्डित रामलोचन ने कहा कि पुराने जमाने में भी राजों और अमीर आदमियों के यहाँ ऐसे ही नाटक हुआ करते थे। यह सुनकर सर विलियम को आश्चर्य हुआ और पण्डित रामलोचन से आप शकुन्तला' पढ़ने लगे। उस पर आप इतने मुग्ध हुए कि, उस पर गद्य-पद्यमय अंगरेजी अनुवाद आपने कर डाला। यद्यपि अनुवाद अच्छा नहीं बना, तथापि योरपवालों की आँखें खोल दी। उसे पढ़कर लोगो ने पहले-पहल जाना कि संस्कृत का साहित्य खूब उन्नत है। जर्मनी का गैटी' नामक कवि तो सर विलियम के अनुवाद को पढ़कर अलौकिक आनन्द से मत्त हो उठा । उसने उसी मत्तता 1. द्विवेदी जी जर्मन कवि गेटे का नाम गेटी भी लिखते थे। -भारत यायावर
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/५३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।