.46/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 1389 ईसवी में हेमऊरुफ की मृत्यु हुई। इसके अनन्तर ही माजापिहित की अवनति का आरम्भ हो गया। मृत राजा के पुत्र और दामाद में युद्ध छिड़ गया। इस बहुकालव्यापी युद्ध ने राज्य को तहस-नहस कर दिया। कितने ही देशांश और प्रान्त स्वतन्त्र हो गये। वे बिल्वतिक्त के चक्रवर्ती राजा के आधिपत्य से निकल गये। इसी समय देश में घोर दुर्भिक्ष भी पड़ा। उसने बची-खुची प्रजा का अधिकांश मृत्यु के मुख में पहुंचा दिया। इसके आगे बिल्वतिक्त के नरेशों का वृत्तान्त बहुत कम मिलता है। हेमऊरुफ की पौत्री सुहिता के राज्यकाल में और भी कई प्रान्त स्वतन्त्र हो गये। उसके अनन्तर उसके छोटे भाई कृतविजय ने राज्य पाया। उसने चम्पा की राजकुमारी का पाणिग्रहण किया। वह 1448 ईसवी में मरी। इस रानी का झुकाव इस्लाम धर्म की ओर था । अतएव उसके राज्य-काल ही में इस धर्म ने उसके राज्य में धीरे धीरे प्रवेश आरम्भ कर दिया था। माजापिहित के अन्तिम राजा वा-विजय (पंचम) ने मुसलमानों के साथ बहुत कुछ रियायत की। पर उन्होंने उसकी कृपाओं का बदला कृतघ्नता से दिया । वह 1478 ईसवी में मरा । उसी समय से जावा में मुसलमानों का राज्य हो गया। कालान्तर में उसका नाश करके हालैंड के डचों ने जावा आदि द्वीपों को अपने अधिकार में कर लिया। उनका वह अधिकार अब तक अक्षुण्ण है। जावा के अनेक निवासी भाग कर बाली में जा बसे । वहाँ यद्यपि बौद्ध धर्म का भी प्रचार है, पर शैव ब्राह्मणों ही की संख्या अधिक है । इस छोटे से लपू में हिन्दुओं के कई पुराण, वेदों के कुछ भाग तथा राजनीति के कई ग्रन्थ या ग्रन्थांश अब तक, संस्कृत भाषा में, विद्यमान हैं । रामायण और महाभारत भी, खण्डित रूप में, वहां पाये जाते हैं । पर उनकी भाषा संस्कृत नहीं, जावा की प्राचीन भाषा 'कवी' है। ["श्रीयुत परमेश्वर शर्मा के नाम से भक्टूबर, 1927 को 'सरस्वती में प्रकाशित । 'पुरावृत्त-प्रसंग' में संकलित ।]
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