पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४७८

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474 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली एक ही ईश्वर की सन्तान हैं । अतएव वे सब भाई भाई के समान हैं । यद्यपि तात्त्विक दृष्टि से यह सिद्धान्त सब लोगों को मान्य था, तथापि व्यवहार में उसके अनुसार आचरण बहुत कम होता था। राज्यक्रान्ति के समय तो भ्रातृभाव का केवल नाम ही रह गया था। इससे बढ़कर आश्चर्य की और कोई बात नही कि जिन लोगों ने भ्रातृभाव को राज्यक्रान्ति का मूल तत्त्व माना था उन्ही लोगों ने हजारो स्त्रियों और पुरुषों का वध किया। (ई) राज्यप्रबन्ध-जिम प्रकार फ्रांस की राज्यत्रान्ति समता, स्वाधीनता और भ्रातृभाव न स्थापित कर सकी, उसी प्रकार वह फ्रांस में राज्य का स्थायी प्रबन्ध भी न कर सकी । यद्यपि अनेक सभायें हुई, प्रजा के हक़ों और कर्तव्यो के सम्बन्ध में बहुत चर्चा हुई और नियम भी अनेक बनाये गये, कार्यकारिणी मण्डलियो के अधिकार भी नियत किये गये, नियामक मण्डलियो ने कई कानून भी बनाये, एक बार बने हुए कानून रद किये गये और नये कानून बने, सब लोगों में सम्पत्ति का यथोचित विभाग करने के अभिप्राय से आर्थिक नियम बनाये गये तथापि राज्य का उचित प्रबन्ध न हो सका। कागज पर नियम लिख देना (Paper Constitution) कठिन काम नहीं है । पर लोगो से उन निवमो के अनुमार आचरण कराना बहुत कठिन काम है। क्रान्तिकारको की स्थापित की हुई प्रजा-मत्ताक राज्यपद्धति भी बहुत दिनो तक न चलने पाई । शीघ्र ही सारी मत्ता सैनिको के हाथ में चली गई और कई वरमो तक फ्रांस में सेना की बादशाही रही । परन्तु इस अमफलता के लिए क्रान्तिकारको को दोष देना उचित नही । यद्यपि अनेक कारणों से उनका उद्देश सफल नहीं हुआ, तथापि इसमें सन्देह नही कि उनका उद्देश दुग न था । उन लोगो ने बहुत कुछ सफलता भी प्राप्त कर ली थी। हक़दारो के हक़ उठा देने से मर्वमाधारण जन-ममूह को राजनैतिक कार्यो में शामिल होकर देश-सेवा करने की स्वाधीनता मिल गई थी। यह इसी स्वाधीनता का फल है कि नेपोलियन जैमा अद्वितीय सेना-नायक प्रकट हो सका। लगभग पचास वर्ष तक फ्रांस में किसी न किसी तरह की बादशाही बनी ही रही । सन् 1848 ईसवी में दूसरी बार प्रजासत्ताक राज्य स्थापित किया गया; परन्तु पहले के समान यह भी स्थायी न हो सका । अन्त मे तीसरी बार, मन् 1870 ई० में, प्रजासत्ताक राज्य स्थापित किया गया, जो वर्तमान समय तक विद्यमान है। इस ऐतिहासिक घटना से और भी अनेक सीखने योग्य बाते मालूम हो सकती हैं । फ्रांम की राज्यक्रान्ति का यही भाग, लेखको और पाठको को, विशेष मनोरंजक तथा शिक्षादायक है। इसमें मन्देह नहीं कि यदि इस विषय का विवेचन किया जाय कि राज्य- क्रान्ति से फ्रेंच लोगों को राष्ट्रीय नीतिमत्ता पर क्या परिणाम हुआ, तो उससे बहुत मी शिक्षादायक बातें जात होंगी। परन्तु इन सब बातों के लिए इस लेख में स्थान नहीं । अतएव लेखनी यही विराम करना चाहती है। पाठक क्षमा करें। -