यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें/469 (2)स्वदेशत्याग करके जो लोग विदेशों में चले गये थे उनके विषय मे क्या बन्दोबस्त किया जाय? ये लोग विदेशियों की सहायता से अपने देश-भाइयों का द्रोह कर रहे थे। (3) मर्वमाधारण लोगों की दरिद्रता का निवारण किम उपाय मे किया जाय? (4) जर्मनी की रियासतों ने फ्रांस के अनेक स्वदेणन्यागियों को अपना आश्रय दे रखा था। उनकी सहायता से वे लोग युद्ध की तैयारी भी कर रहे थे। इन लोगों का बन्दोबस्त करने के लिए जब मभा कोई कानून बनाती तब गजा और उसके पक्ष के लोग उसे रद कर देते। सभा की कार्यकारिणी मण्डली और नियम बनाने वाली मण्डली में फूट थी। इसलिए सभा की इच्छा के अनुसार कोई काम न होने पाता था। अन्त में, जब सन् 1791 के दिसम्बर में, विदेशियों ने फ्रास पर हमला करने की तैयारी की तब राजा को भी लडाई की तैयारी करनी पड़ी। परन्तु राजा, गनी और उनके मन्त्रिगण विदेशियों का आक्रमण न रोकना चाहते थे। इसका फल यह हुआ कि सेना का यथेष्ट प्रबन्ध न किया जा सका। इम पर एक दल वाले दूसरे दल वालो को दोप देने लगे । सभा ने राजा के दो मन्त्रियो को अभियुक्त किया। पेरिम के सर्वमाधारण लोग बलवा करके राजा के विषय मे अपनी अप्रसन्नता प्रकट करने लगे। मारे देश में यह पुकार मच गई कि यदि विदेशियों का मामना करना है तो गजा को पदच्युत करके कार्यकारिणी मण्डली के मारे अधिकार स्वदेशभक्तो को दे दिये जाय । मन् 1792 ई० के अगस्त महीने की 10वी तारीख को, रात के समय, लोगो ने गजा के महल पर हमला किया। राजा भाग गया। लोगों ने डैन्टन नाम के अपने नायक को प्रधान मन्त्री नियत किया। इस प्रकार नियमानुमार गज्य का प्रवन्ध करने का यत्न निष्कल हो गया। भयका साम्राज्य अब राज्यक्रान्ति का अति दारुण और भयानक रूप प्रकट हुआ। फ्रांस पर चढ़ाई करने के लिए जर्मनी की रियामतों के साथ इटली, स्पेन, आस्ट्रिया, रूम, इंगलैंड इत्यादि यूरोप के सभी देश तैयारी करने लगे। इस मम्मिलित शक्ति का सामना करना महज काम न था। यदि इस समय फ्रांस के निवासियो में एकता होती तो वे इस सम्मिलित सेना को भी हग देते; परन्तु इस समय तो उन लोगों मे फूट की वृद्धि हो रही थी। कोई गुप्त रीति से विदेशियो की सहायता कर रहे थे और कोई प्रकट रूप से । कोई राजा का पक्षपात कर रहे थे और कोई बलवाइयो का। नियमानुसार राज्य का प्रबन्ध करने वालो की कोई भी न सुनना था । बलवाइयो को यह विश्वास हो गया था कि हमारे बलवों में अद्भुत सामर्थ्य है । उन लोगों ने अपनी वलवाई शक्ति के जोर से ही राज्य के मन सूत्र अपने अधीन कर लिये थे। तथापि वे भली भाँति जाने थे कि यह समय बड़ा विकट है-यूरोप के सब देश एकत्र होकर फ्रांस पर चढाई कर रहे हैं और अपने देशवासियों मे तो फूट, गड़बड़, अनबन्ध, सन्देह, अविश्वास, गुप्त भेद, झगड़ा आदि अनेक दुर्गणो की वृद्धि हो रही है। ऐसी अवस्था में युद्ध की तैयारी सफलतापूर्वक कैसे की जाय ? यदि विदेशियों के दांत खट्टे न किये जायेंगे तो राज्यक्रान्ति करने वाले अपने स्वदेशवान्धवों का किया कराया सब काम नष्ट हो जायमा और फ्रांस को फिर राजा तथा हक़दार 1
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४७३
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