पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४४८

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-444/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली . निकलते हैं वैसे अंगरेजी में नहीं । अँगरेज़ी में तो अनुवादों की ही अधिकता रहती है । फिर फ्रांस और जर्मनी आदि ने शिल्प तथा विज्ञान में जैसी उन्नति की है वैसी इंगलैंड ने नहीं की । फ्रांस और जर्मनी में जितने अधिक आविष्कार करते है उतने अन्यत्र नहीं। ये देश संसार की आधुनिक उन्नति की जड़ हैं । इंगलैड इन देशो से कई बातो में पीछे है । इन देशों को उन्नतिकारक विचारों का केन्द्र कहना चाहिए । अतएव भारतवासी इन देशों में विद्योपार्जन करके बड़ा लाभ उठा सकते हैं । इस काम के लिए आवश्यक है कि वे इन देशो की भाषायें सीखें । अँगरेजी भाषा और साहित्य की सहायता से हम लोग जितनी मानसिक उन्नति कर सकते है उससे कही अधिक उन्नति फ्रेंच और जर्मन भाषा तथा साहित्य की सहायता से कर सकते हैं । फेंच ऐसी भाषा है जो एक आध देश को छोड़कर यूरोप के सम्पूर्ण देशो में बोली और समझी जा सकती है। टर्की. इजिप्ट और रूस के शिक्षित अधिवासी उमी प्रकार फ्रेंच भाषा का व्यवहार करते हैं जैसे कि शिक्षित भारतवासी अँगरेज़ी का । परन्तु और देशवासी शायद यह समझते है कि अंगरेज़ी के सिवाय संसार में कोई अन्य भाषा ही नहीं। जब कभी कोई भारत सन्तान फ्रांस के रास्ते इंगलैंड को जाते हैं तब उनकी दशा बडी ही करुणाजनक होती है। वे टामस कुक ऐंड सन के आदमियो के हाथ की कठपुतली बने हुए, गूंगों और बहरो की तरह फ्रांस की वीरभूमि को पार कर जाते हैं । वे उस देश का कुछ भी आनन्द नही लूट सकते और न उससे कोई लाभ ही उठा सकते है । पर फ्रांस की विद्या और विज्ञान कला और कौशल, उन्नति और सभ्यता तथा समता और स्वाधीनता का क्रीडाक्षेत्र है। जर्मनी शिल्प और विज्ञान का केन्द्रस्थल है। जर्मन भाषा में इस विषय के सैकड़ो मौलिक और गवेषणापूर्ण ग्रन्थ निकलते रहते हैं । इंगलैंड के बड़े बड़े विश्वविद्यालयों में जो उत्तमोत्तम ग्रन्थ पढ़ाये जाते हैं उनमें से अधिकांश जर्मनी के अनुवाद-मात्र है । इमके सिवा शिल्प-शिक्षा में तो संसार का कोई भी शिक्षित देश जर्मन का मुकाबला नहीं कर सकता । पर शोक है कि हमारे देश के निवासी इस ओर कुछ भी ध्यान नहीं देते। अंगरेज़ी के रंग में बेतरह रंगे हुए हैं। इंगलिश और इंगलैंड के सिवा वे कुछ जानते ही नहीं । जो महाशय एक बार भी इंगलैंड हो आते हैं वे बड़े भारी नेता ममझे जाते है। केवल यही नही कि लोग उन्हें वैसा मानते हैं, किन्तु वे खुद भी अपने को महा- राजनीतिज और सुधारक मानने लगते है, चाहे वे जानते कुछ भी न हों। हमारे देश वासियों का ख्याल है कि विलायत के आक्सफ़र्ड और केम्ब्रिज विश्वविद्यालयों से पढ़कर जो लोग निकलते है वे आधुनिक ज्ञान विज्ञान के बड़े भारी आचार्य होते हैं । पर वास्तव में ऐमा नहीं है। वहाँ पर जिम प्रकार की पढ़ाई होती है उसे हम सच्ची नहीं कह सकते । अतएव यदि हम लोग आधुनिक ज्ञान और विज्ञान की सच्ची शिक्षा प्राप्त करके अपनी वास्तविक उन्नति करना चाहते है तो हमें विद्योपार्जनार्थ पेरिस, बरलिन जनेवा और रोम को जाना चाहिए । इनमें से पेरिस को यदि हम सरस्वती का पीठ-स्थान कहे तो अनुचित नही । आज-कल कहीं विद्या रूपी सूर्य का उदय होता है, जिसका प्रकाश धीरे-धीरे सारे सभ्य संसार में फैल जाता है। विक्टर ह्य गो ने ठीक ही कहा था