पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४४५

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कालेपानी के आदिम असभ्य /441 हैं जो अन्दमन में बस गये हैं। लोगों का पहले खयाल था कि अन्दमनी असभ्य अपने तीरों को विष में बुझाते हैं । पर यह बात अब मिथ्या मिद्ध हो चुकी है। हाँ, इनके तीरों के घाव विषाक्त ज़रूर हो जाते है। इसका कारण यह है कि जानवरों को मारने के बाद उनके मृत शरीर से निकाले हुए तीरों को ये लोग धोने नही । वही यदि मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं तो घाव को विषाक्त कर देते हैं । इसी से वह जल्दी अच्छा नहीं होता। अन्दमनियों की कुछ रीतियाँ बड़ी ही विचित्र हैं। बहुत दिनो के बाद जब दो मित्र आपस में मिलते है तब देर तक जोर जोर से चिल्लाते और आंसू बहाते है। यही उनके हर्ष-प्रकाशन की रीति है । उनको ऐमा करने यदि कोई विदेशी देखे तो उसे यही भासित हो कि इन लोगों पर कोई बहुत बड़ी विपत्ति आ पड़ी है। जब दो आदमी एक दूसरे से बिदा होते हैं तब वे परस्पर हाथ फूंकते और अपनी भाषा में कहते हैं कि ईश्वर करे तुम्हें कभी मॉप न काटे। इनकी वैवाहिक पद्धति भी बड़ी ही विचित्र है। जब इन लोगों की जाति के वृद्ध पुरुषों को मालूम हो जाता है कि कोई युवा और युवती विवाह करना गहते है तब वे एक नई झोपड़ी बनवा कर उममे वधू को बिठा देते हैं । फिर कुछ आदमी वर की खोज में बाहर निकलते है। उसके मिल जाने पर वे लोग उमसे पूछ- पाछ करते है । तब वह बहुत लज्जा और संकोच प्रकट करता है और विवाह करने की अनिच्छा प्रकट करता है। वह जंगल को भाग जाता है । वहाँ से उमके मित्र उसे जबर- दस्ती पकड़ लाते हैं । और वधू की झोंपड़ी के भीतर ले जाकर उसकी गोद मे वर को बिठा देते हैं । यह करके उस जोडी को वे उसी झोपडी में छोड़ देते है । वम, विवाह बन्धन पूर्णता को पहुंच जाता है। ये लोग नाचते खूब हैं । पर स्त्रियो को नाचने की आजा नही । केवल पुम्प ही नृत्योत्सव में शरीक होते है । ये लोग हाथ नचा नवा कर कृदने हुए चक्कर काटने है । यही इनका नाच है । नृत्य के समय इनकी स्त्रियाँ पक्ति बोध कर वही बैठ जाती है और अपनी रानो पर हाथ पटक पटक कर ताल देती रहती हैं। इनके नाच मे एक नेता या मूत्रधार होता है । वह, बीच बीच में, अपने पैर की एडी से, लकड़ी के एक ढोलक पर, टकार-शब्द करता जाता है। वह बीच रहता है। नर्तक उसी के चारो ओर नाचते हुए चक्कर काटते है । नाचते समय ये लोग मुंह से नाना प्रकार के चित्र-विचित्र गब्द करते रहते हैं । उसी को यदि आप इनका गायन कह्ना चाहे तो कह सकते है । अन्दमनियो के धर्म का कुछ भी ठौर-ठिकाना नही । न तो वे किसी प्रकार की पूजा-अर्चा या प्रार्थना ही करते है और न बलिदान ही देते है । पर ये किसी को ईश्वर जरूर मानते हैं। इनका ख़याल है कि दण्ड देने के लिए वही आँधी चलाता है । समुद्र, वन, नदी आदि को भी ये एक प्रकार के देवता समझते है। उन सबकी अधिष्ठात्री आत्माओं में ये देवत्व की कल्पना करते हैं; परन्तु उनकी पूजा-अर्चा ये नही करते ! पानी में अपनी परछाईं देखकर ये समझते हैं कि इन्हें अपनी आत्मा दिखाई दे रही है । इनका विश्वास है कि मरने के बाद इनकी आत्मायें किसी अज्ञात जगह में वास करती हैं । परन्तु इनको भावी दण्ड या फल प्राप्ति का विचार कभी सताता या आनन्दित नहीं करता।