पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४४४

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440 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली कपड़े से उन्हें काम नहीं । बेचारी सीना भी नहीं जानतीं। एक बड़े से पत्ते ही से वे अपनी लज्जा का निवारण कर लेती हैं । इनकी कमर में छाल की एक रस्सी सी बँधी रहती है। उसी के सहारे ये पत्ते को बाँध या लटका लेती है। इस तरह के पत्ते इन्हें सहज ही मिल जाते हैं। न उनके दाम देने पड़ते और न उन्हें सिलाने के लिए किसी दर्जी ही का मह ताकना पड़ता है। अन्दमनी स्त्रियों छाल का एक और भी आवरण रखती है। उसे वे कमर के दाहने बाँयें, अपने कमरबन्द में बांधकर लटकाये रहती है। इसे वे सिर्फ शोभा के लिए, केवल उत्सवों या त्योहारों के अवसर पर, धारण करती हैं। अन्दमनी स्त्री और पुरुष दोनों ही एक प्रकार का विलक्षण गोदना गुदवाते हैं । शंख या सीप आदि के तेज़ टुकड़ों से ये अपने हाथ, पैर या शरीर के और अंगो से मांस के छोटे छोटे टुकड़े काट कर फेंक देते हैं । ये टुकड़े एक ही सीध में, थोड़ी थोडी दूर पर काटे जाते हैं । कभी कभी कुछ विशेष आकार के भी मांस-खण्ड काट लिये जाते है । ऐसा करने से काटी हुई जगह में घाव हो जाते है । घाव अच्छे हो जाने पर उन जगहों का चमड़ा चिकना और मुलायम हो जाता है। उनके रंग में भी कुछ विशेषता आ जाती है। बस, इसी को वे शोभावर्द्धक समझते हैं। यही उनका गोदना है। घावों की जगह ये लोग रंग वगैरह कुछ नही भरते । रंगों का ज्ञान ही इन्हे नही । वे इनके लिए अप्राप्य भी हैं। ये लोग बड़े कुशल शिकारी हैं। शिकार ही से ये अपना जीवन-निर्वाह करते है । जंगली सूअरो को ये लोग तीर या भाले से मारते हैं। नदियों के मुहानो में ये टरटल नामक मछली का भी शिकार करते हैं । परन्तु कैसे ? तीर कमान से ! डोगी पर ये सवार होते हैं। उसके अगले भाग पर कमान पर तीर चढ़ाकर और अपने शरीर को ममतुलावस्था मे रखकर, ये निस्तब्ध खड़े रहते है। बस, जहाँ पानी के भीतर कहीं मछली की झलक इन्हें देख पड़ी, तहाँ तत्काल ही इनके कमान से तीर छूटता और मछली को छेद देता है । मछली के तीर लगते ही ये झट पानी में कूद पड़ते हैं और तीर सहित मछली को पकड़ लाते है । ये लोग बड़े ही अच्छे निशानेबाज है । शायद ही कभी किसी अन्दमनी का निशाना चूकता होगा । ये लोग तैरने में भी बड़े दक्ष होते है । मीलों तरते चले जाते है । कभी थकते ही नहीं। अन्दमन के मूल निवामी अधिकांश मांसाहारी हैं। सुअर के मांस को तो ये ग्म- गुल्ला ही समझते हैं । इनका मबसे अधिक भोज्य पदार्थ मछली है। वह इनके लिए मृप्राप्य भी है। कीड़े, मकोड़े और छिपकली आदि को भी ये खा जाते हैं । बेर तथा कुछ अन्य जंगली फल और शहद भी इनका वाद्य है। खाने की चीजो को वे खूब उबालते हैं और गरमागरम ही उड़ा जाते हैं । अन्दमनी लोगों के पाम गस्त्रों की मद में केवल तीर-कमान और भाला ही रहता है । और शस्त्र उन्हें प्राप्य नहीं। चाकू के बदले सीपियों और शंखों के धारदार टुकड़े-मात्र होते हैं। उन्ही मे वे काटने और छीलने का काम लेन है । पहले तो वे तीरों के फल की जगह केवल एक नोकदार पैनी लकड़ी ही लगाते थे । पर अब वे लोहे के फल काम में लाने लगे हैं । यह लोहा या लोहे के फल उन्हें भारत के उन लोगों से प्राप्त होते ।