438 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली पृथ्वी का बहुत-सा भाग डूब गया । पर इनका निवास स्थान बच गया। इससे इस जाति के लोग जो अन्य स्थानों में रहते थे वे नष्ट हो गये। पर ये लोग बच गये। किसी समय एशिया, आस्ट्रेलिया आदि देश और द्वीपपुंज सब आपस में संलग्न थे। बीच बीच में पृथ्वी के डूब जाने से इन सबकी स्थिति की वह दशा हुई जिसमें ये आज-कल देखे जाते - - - अन्दमन के आदिम असभ्य मनुष्य खर्वाकृति-बहुत ठिंगने-होते हैं। उन्हें देख कर विदेशियों के मन में कौतूहल उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता। ऊँचाई में ये लोग 4 फुट 10 इंच से अधिक नहीं होते। स्त्रियों की ऊंचाई पुरुषों से भी तीन चार इंच कम होती है तथा इनका शरीर गठा हुआ और हृष्ट-पुष्ट होता है । अन्दमनियों का रंग कोयले के सदृश काला, बाल बूंघरवाले और मुख कान्तिमान होता है । पर उन्हें रूपवान् नहीं कह सकते। क्योंकि उनकी नाक चौड़ी और चिपटी, होंठ काले और आँखें उभड़ी हुई होती हैं । भौंहों की सुन्दरता बढाने के लिए वे उन्हें मुंडा डालते है। पर फल इमका उलटा ही होता है। ये लोग प्रसन्नचिन, स्वाधीनता के प्रेमी और शिकार के शौकीन होते हैं। अपनी सन्तान के साथ ये बड़े प्रेम और बडी दया का व्यवहार करते है। ये बड़े ही सन्तान वत्सल होते है । परन्तु कुछ लोगो का कहना है कि इनमें कृतघ्नता, धोखेबाज़ी और निर्दयता के भी भाव, कभी कभी, कारणवश, उद्दीप्त हो उठते हैं। अपरिचित आदमियों के साथ इनका व्यवहार अच्छा नहीं होता। ये उन्हें अपना शत्रु समझते हैं और देखते ही उन्हें मार डालने की चेष्टा करने हैं । बहुत पुराने जमाने में यदि कोई जहाज़ इन द्वीपों के किनारे नष्ट हो जाता था तो जहाज़ वालों का पता न चलता था कि वे कहाँ गये और उनका क्या हुआ । अनुमान यह है कि जहाजों के अपरिचित आदमियों को अन्दमनी लोग मार डालते थे। इसी से, इस तरह की घटनाओं के बाद, और जहाज़ वाले इन द्वीपों के पास से निकलते ही न थे । वे लोग इन्हें दूर ही से प्रणाम करके निकल जाते थे। कुछ लोगों का खयाल है कि प्राचीन काल के मलयद्वीपवासी जलचोर इन द्वीपों के निवासियों को ज़बरदस्ती पकड़ ले जाने और उन्हे गुलाम बनाते या बेच डालते थे। इसी से यहाँ वाले अपरिचित जनों के दुश्मन हो गये हैं। परन्तु ये अनुमान कुछ ठीक नहीं जंचते क्योंकि अन्दमनी मनुष्य अपनी जाति के भी अपरिचित आदमियों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं । अपरिचितों से वैर-भाव रखना इनका स्वभाव ही सा हो गया है । अन्दमन-द्वीप के मूल निवासी भिन्न भिन्न समुदायों में बंटे हुए हैं । एक समुदाय के लोग दूसरे ममुदाय वालों से बहुत ही कम मिलते-जुलते हैं। यदि कहीं, दैवयोग से, इन लोगों में मुठभेड़ हो जाती है तो ये लड़े बिना नहीं रहते । ये लोग एक ही भाषा से उत्पन्न हुई कई तरह की बोलियां बोलते हैं। एक समुदाय के मनुष्य दूसरे समुदाय के मनुष्यों की बोली अच्छी तरह नहीं समझ सकते । इसका कारण परस्पर मिल-जुल कर न रहने के सिवा और कुछ नहीं जान पड़ता। मभ्य संसार के मनुष्य अन्दमनियों को बहुत समय से जानते है । परन्तु इनके विषय में, कुछ समय पहले तक, हम लोगों का ज्ञान भ्रमात्मक था। सन् 1290 ईसवी
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