पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४४

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40/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली रामायण कम से कम ईसा के पहले शतक की पुस्तक है । उसमें जावा अर्थात् यवद्वीप का नाम आया है । मिस्र देश के प्राचीन इतिहासवेत्ता टालमी ने, दूसरे शतक में, उसका उल्लेख किया है । बोर्नियो गम के टापू में एक बहुत पुराना शिलालेख मिला है। वह संस्कृत भाषा में है और ईमा के चौथे शतक का मालूम होता है । वह जिस लिपि में है उसी लिपि के लेख चम्मा और काम्बोज में भी मिले है। उनकी लिपि और भाषा दक्षिणी भारत के पल्लव-नरेशों के शिलालेख से मिलती-जुलती है । बोर्नियो के शिलालेख में अश्ववर्मा नामक राजा का उल्लेख है। यह गजा अपने वंश का आदि पुम्प था । इमके पुत्र मुलवर्मा ने बहुसुवर्णक नाम का यज्ञ किया था। इसके बाद पाँचवे शतक के शिलालेख मिले है; वे पश्चिमी जावा के राजा पूर्णवर्मा के है । इनकी भी लिपि पल्लव- वंशी नरेशों की ग्रन्थ नामक लिपि के सदृश है। वर्तमान बटेविया नगर के पास किमी समय तरुण-नगर नाम की एक बस्ती थी । पूर्णवर्मा वहीं का राजा था। उसने दो नहर खुदाये थे । एक का नाम था चन्द्रभागा और दूसरे का गोमती । ये दोनों ही नाम उनरी भारत की नदियों के नाम की नकल हैं। बहुत सम्भव है कि इसी पूर्णवर्मा या इनके परवर्ती राजा के राजत्व-काल में प्रसिद्ध चीनी यात्री फ़ाहियान मिहल द्वीप से पश्चिमी जावा मे पहुँचा हो । इम यात्री ने लिखा है कि उस समय वहाँ अनेक ब्राह्मण थे । बौद्ध धर्म का प्रचार शुरू हो गया था, परन्तु तव तक उमके अनुयायी बहुत कम थे। इस यात्री ने, 413 ईमवी में, जावा से कैण्टन नामक नगर के लिए जिस जहाज पर प्रस्थान किया था उस पर 200 हिन्दु व्यापारी थे। यह बात उसने स्वयं ही अपने यात्रा-वर्णन में लिखी है। पुराने अवतरणो और उल्लेखों में मालूम होता है कि जावा में पहले-पहल काश्मीर के गजा या गजकुमार गुलवर्मा ने, 423 ईसवी में बौद्ध धर्म का प्रचार किया । यह राजकुमार जावा से चीन को एक ऐमे जहाज पर गया था जिसका मालिक नन्दी नाम का एक हिन्दू था। इससे सिद्ध है कि उस समय इन टापुओ के हिन्दू जहाज़ बनाने, जहाज चलाने और जहाजों के द्वारा वाणिज्य करने में निपुण थे । चीन की प्राचीन पुस्तको से भी जावा के अस्तित्व और वहां हिन्दुओ का गज्य होने का प्रमाण मिलते है । चीन के पहले मुङ्ग वंश के इतिहास मे लिखा है कि 435 ईमवी में जावा-नरेश श्रीपाद धारावर्मा ने अपने दूत के द्वारा चीन के राजाधिगज के के पाम एक पत्र भेजा था। छटे शतक के एक अन्य चीनी इतिहाम मे लिखा है कि जावा निवामी कहते है कि उनके गज्य की स्थापना हुए 400 वर्ष व्यतीत हुए । मालूम होता है कि छठे शतक के अन्त में पश्चिमी जावा के राज्य का पतन हो गया और मध्य जावा में एक नये ही राज्य की स्थापना हुई। चीन के ऐतिहासिक ग्रन्थों मे लिखा है कि मध्य जावा मे कलिङ्ग नामक राज्य का उदय हुआ। उममें यह भी लिन्द्रा है कि उस राज्य से नथा बाली से भी, और 649 ईसवी के बीच कई राजदूत चीन को गये और वहाँ के राजेश्वर के सम्मुख उपस्थित होकर उन्होंने अपने अपने देश के स्वामियों के पत्र उसे दिये । 674 ईसवी में कलिङ्ग के राजासन पर सीमा नाम की एक रानी आसीन हुई । उसका राज्य राम-राज्य के सदृश था। प्रजा का पालन .