प्रशान्त महासागर के टापुओं की कुछ असभ्य जातियां | 423 कर देते हैं। उनके क्रूर कर्म की वे सदा याद दिलाया करते है । धनुर्बाण और भाला ही उनके प्रधान शस्त्र हैं। सालोमन टापू के निवासी अपने कान छेदकर उस छेद को धीरे-धीरे इतना बड़ा कर देते हैं कि उसके भीतर मोटी-मोटी लकड़ियाँ तक चली जाती हैं । एक माहब ने तो यहाँ तक लिखा है कि उस छेद के भीतर इन लोगों का सिर तक चला जाता है ! कान भी इनके बहुत लंबे होते हैं । इनके बाल ऊपर को उठे और बिखरे हुए होते है। इस द्वीप-पुज में एक छोटा-सा टापू वोगेनविली नाम का है। इसके निवासियों को मनुष्य नहीं, राक्षस कहना चाहिए। वे मनुष्य-भक्षी हैं। अपरिचित आदमी उनसे भागे नही बचता। पकड़कर उसे वे फ़ौरन खा जाते है । लड़ाकू ऐसे होते है कि पड़ोस के टापुओं पर अकारण चढाई करके वहाँ वालों के सिर काट लाते हैं। मनुष्य को मारना और मारकर खा जाना उनके लिये खेल है । आर० लाइडेकर नामक एक साहब ने अपनी एक किताब में ऐसा ही लिखा है। [सितम्बर, 1911 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'वैचित्र्य-चित्रण' पुस्तक में संकलित।]
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२७
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