अफरीका के खर्वाकार जंगली मनष्य 1 [1] अफ़रीका आश्चर्यों का घर है। वहां की सभी बातें अजीब हैं । वहाँ के मनुष्य, वहाँ के पशु-पक्षी, वहाँ के अगम्य जंगल और वहाँ के हजारों कोस-व्यापी मरुस्थल अचरज से भरे हुए हैं। 1888 ईसवी में स्टैनली साहब ने इस आश्चर्यमयी भयावनी भूमि में, ईजिप्ट से लेकर विक्टोरिया न्यान्जा झील तक, बहुत लंबा सफ़र किया । अपनी इस कौतुकपूर्ण यात्रा का वर्णन उन्होंने एक पुस्तक में लिखा है । इस पुस्तक में अफ़रीका के खर्वाकार जंगली लोगों का भी वृत्तांत है । ये असभ्य जंगली बहुत छोटे होते हैं । परन्तु ठिंगने होकर भी वे बड़े चालाक और शिकारी होते हैं । 1888 ईसवी के मार्च महीने में, जिस समय स्टैनली साहब इपोटो नामक जगह से कुछ दूरी पर खेमे डाले हुए थे, उनके पास एक खर्वाकार स्त्री लाई गई। जहाँ पर खेमे गड़े थे उससे 14 मील पर इन जंगली लोगों के रहने की जगह थी। ये लोग बड़े जबरदस्त चोर होते हैं। स्टैनली माहब के खेमे तक ये धावा मारते थे और खाने-पीने की चीजें चुरा ले जाते थे । यह स्त्री इंदेकरु नामक नगर के खर्वाकार गजा की गनी थी। यह प्राय: नग्न थी। इसके गले में पालिश किए हुए लोहे की पतली-पतली हसुलियाँ थीं, जिनके किनारे, दोनों छोरों पर, घड़ी की कमानी के समान, घेरदार थे। उसके कानों से लोहे की तीन-तीन मोटी-मोटी बालियाँ लटकती थीं । बाजूबंद भी उसने लोहे ही के पहन रक्वे थे । उमका रंग भूग था: मुंह फैला हुआ गोल था; आँखें बड़ी- बड़ी थी; होंठ छोटे परंतु भरे हुए थे। कमर में वह छाल का एक छोटा मा कपडा लपेटे हुए थी । यद्यपि वह प्रायः नग्न थी, तथापि उसके चेहरे मे शालीनता झलकती थी। वह मब प्रकार शांत थी। ऊँचाई में वह 4 फुट 4 इंच थी । उमर उमकी कोई 19 वर्ष की होगी। उसे देखकर चिन बहुत प्रमन्न होता था । इम प्रकार की एक स्त्री स्टैनली माहब के माथी, सर्जन पार्क के साथ बहुत दिन नक थी। वह उनका बोझ उठाती थी; जहाँ पड़ाव पड़ता था वहाँ लड़कियां इकट्ठी करती थी; छोलदारी के दरवाज़े बैठी हुई रखवाली करती थी; चाय बनाना सीख गई थी, और गेज बनाकर मर्जन पार्क को पिलाती भी थी। वह उनके अत्यन्त वशीभूत थी; जी-जान मे उनकी सेवा करती थी; और अनजान आदमी को कभी उनके अमबाब के पास नहीं फटकने देती थी। आक्टोबर, 1888 में स्टैनली साहब बोडो नामक किले को जा रहे थे। 28 आक्टोबर को वे अवाटिको स्थान में पहुंचे। वहाँ पर एक स्त्री-पुरुष का जोड़ा उनके आदमी
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