पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

36 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली किसी समय, दूर दूर तक के देशों में अपनी सभ्यता और अपनी कला-कुशलता का प्रकाश फैला कर अपनी सत्ता चलाई थी। यह जानकर किस विवेकशील भारतवासी की आँखों से आँसू निकल पड़ेंगे ? जलालाबाद, हिद्दा और काबुल में जो बौद्धकालीन चिह्न-मूर्तियाँ और मूर्ति- खण्ड आदि-मिले हैं, उनमें गान्धार शैली की शिल्पकला पाई जाती है। पर जो चिह्न बामियान और उसके पास-पड़ोस के स्थानों में प्राप्त हुए है वे वौद्ध-कालीन शिल्प के सच्चे नमुने हैं । हाँ, उनमें ग्रीस अर्थात् यूनान की कारीगरी का भी कुछ असर पडा मालूम होता है। सम्राट कनिष्क का ग्रीष्म-निवास, कपिशा नाम के नगर में था। जहाँ पर वह था वहाँ अब वेगरम नाम का नगर आबाद है । जिम नगरहार मे दीपक र बुद्ध ने, अपनी तपस्या के प्रभाव से, कितनी ही आश्चर्यजनक घटनायें कर दिखाई थी वही अब जलालाबाद के नाम से विख्यात है। हिद्दा वह जगह है जहाँ गौतम बुद्ध के भौतिक शरीर का कुछ अंश रक्खा गया था और जिसके दर्शनों के लिए सैकड़ो कोस दूर से बौद्ध-यात्री आया करते थे। इन स्थानों में जो स्तूप, विहार, चैत्य और मूर्तियां मिली है वे विलकुल वैसी ही हैं जैमी कि तक्षशिला और तख्ने-बाही आदि के ध्रुस्मा को खोदने से मिली हैं। हिदा मे तो पत्थर की कारीगरी की कुछ ऐसी भी चीजे प्राप्त हुई है जिनकी वगवरी भारत मे प्राप्त हुई गान्धार शैली की कारीगरी वाली चीजें भी नहीं कर सकती। हिद्दा में जिस स्तूप को फ़रामीमी पुरातत्त्वज्ञो ने खोज निकाला है उसे वहाँ वाले अपनी भाषा पश्तो मे खायस्ता का स्तूप कहते है । 'ख़ायस्ता' का अर्थ है -विशाल । और यह स्तूप सचमच ही बहुत विशाल है। यह बहुत अच्छी दशा में भी है । जिम नमय फ़ाहियान नाम का चीनी परिव्राजक हिद्दा के पवित्र तीर्थ का दर्शन करने आया था उस समय वहाँ पर एक अभ्रकष बौद्ध-विहार था। उसके विषय में उसने लिखा है कि धरातल चाहे फट जाय और आकाश चाहे हिडोले की तरह हिलने लगे, पर यह विहार अपने स्थान से इंच भर भी हटने वाला नही । हिदा में कई स्तुप थे। उनमें बुद्ध भगवान् शरीगवशिष्ट अंश -शीर्षास्थि, दाँत और दण्ड आदि-रक्षित थे। उनकी रक्षा और पूजा-अर्चा के लिए कपिशा के राजा ने कुछ पुजारी नियत कर दिये थे। जिम स्तूप में बुद्ध के सिर की अस्थि रकाती थी उमका दर्शन करने वालो को एक सुवर्ण-मुद्रा देनी पड़ती थी। जो यात्री मोम इत्यादि पर उस अस्थि का चित्र अर्थात् प्रतिलिपि लेना चाहते थे उनसे पाँच सुवर्ण-मुद्रायें ली जाती थी। इसी तरह अन्यान्य गरीगंशो के दर्शनो की भी फीम नियत थी। फिर भी- इतने दाम देकर भी-दर्शनार्थियों की भीड़ लगी ही रहती थी। इन बातो का उल्लेख चीन के प्रसिद्ध परिव्राजक हुन-संग ने, अपनी यात्रा-पुस्तक में, किय । उसने लिखा है कि बुद्ध के ये शरीगंग हिदा के स्नूपो में एक बहुमूल्य स्वर्ण-सिहासन पर अधिष्ठित किमी समय जिस हिदा को इतनी महिमा थी और जिसके विशालत्व और