पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३६९

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दक्षिणी ध्रुव की यात्रा-2 / 365 को दक्षिण की ओर रवाना हुए। रास्ते में बर्फ के टीलों, गढ़ों और ऊँचे नीचे दुर्गम स्थानों को पार करते हुए, साथियों ममेत, कप्तान स्काट पन्द्रह मील प्रति दिन की चाल से आगे बढ़ने लगे। मार्ग में बर्फ के ख़ाम तरह के तूदे बनाने जाते थे, ताकि लौटते वक्त राह न भूल जायँ । 4 जनवरी 1912 को यह दल 87 डिग्री 36 मिनट दक्षिणी अक्षाश पर पहुँचा । वहाँ से दक्षिणी ध्रुव केवल डेड़ सौ मील के फामले पर था और उन लोगो के पाम तीस दिन के लिए खाने का सामान था । कहते है कि इस जगह से स्काट माहब ने अपने कुछ साथियों को लौटा दिया और कहा कि तुम लोग जाकर जहाज का प्रबन्ध कगे। ये लोग रास्ते में ध्रुवीय प्रदेश के जीव-जन्तृओ तथा जलवायु की परीक्षा करने और कितने ही आविष्कार करते हुए अपने ठहरने के स्थान पर लौट आये । कप्तान काट अपने चार साथियो के माथ आगे बढ़े और शायद ध्रव तक पहुंच गये । लौटते वक्त रास्ते में पॉचो वीर-पुगबो का प्राणान्त हो गया । अभी तक यह पता नहीं लगा कि किन कारणों से उनकी मृत्यु हुई । हाँ, 5 मार्च 1912 तक, मभ्य संमार को उनके ममाचार मिलने रहे: उसके बाद नही । कोई दम महीने तक टेगनोवा वाले, कप्तान स्काट के माथी, केवल उन लौटने की प्रतीक्षा ही नहीं करते रहे, किन्तु उनका पता भी लगाते रहे। जब उन्हें यह निश्चय हो गया कि वीरवर कप्तान स्काट और उनके साथी अकाल काल- कवलित हो गये तब वे लोग इंगलैंड को लौटे और वहाँ पहुँच कर उन्होंने संमार को यह महा दुखदायी ममाचार सुनाया। उत्तरी ध्रुव की यात्रा में तो ऐसी दुर्घटनायें कई बार हो चुकी हैं, पर दक्षिणी ध्रव की यात्रा में इसके पहले कभी कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई थी। जो वीर अँगरेज इस भयंकर दुर्घटना के शिकार हुए है उनका परिचय दे देना हम यहा पर उचित समझते हैं। सबसे पहले कप्तान स्काट का हाल सुनिए । स्काट साहब की पदवियों समेत पूरा नाम था-कप्तान राबर्ट फैकन स्काट, आर० एन० सी० बी० ओ०, एफ० आर० जी० एम० । आपका जन्म 6 जन सन् 1868 ईमवी को विलायत के डेवन पोर्ट औटलैड स्थान में हुआ था। आपने वाल्या- वस्था मे साधारण स्कूली शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद सन् 1882 ईसवी मे आप इंगलैड के नौ-सेना विभाग में भर्ती हुए। बहुत दिनों तक मामूली जहाजी काम करने के बाद आप सन् 1898 ईसवी में, इस विभाग के लेफ्टिनेण्ट बनाये गये । एक ही दो वर्ष बाद आपको कमाण्डर का पद मिला । सन् 1904 मे कप्तान के उच्च पद पर आप नियत किये गये। 1905 ईसवी में कैम्ब्रिज और मैंचेस्टर के विश्वविद्यालयो ने आपको विज्ञानाचार्य, अर्थात् डी०एस०सी० की प्रतिष्ठित पदवी से विभूषित किया। सन् 1908 में आपने विवाह किया । सन् 1901 ईसवी मे कप्तान स्काट ने पहली बार दक्षिण ध्रुव की यात्रा की। उस समय आप ध्रुवीय प्रदेशों मे जितनी दूर तक गये थे उसके पहले उतनी दूर तक कोई न पहुँच पाया था । अतएव तब से आपका नाम मारे संसार में प्रसिद्ध हो गया और आप अच्छे ध्रुवीय यात्री माने जाने लगे। इस उपलक्ष्य में उस समय आपको दुनिया भर की मुख्य मुख्य भौगोलिक सभाओ ने स्वर्णपदक दिये थे। स्काट साहब बड़े ही साहसी, दृढ़ प्रतिज्ञ और वीर पुरुष थे। प्रबन्ध करने की शक्ति उनकी