कम्बोडिया में प्राचीन हिन्दू-राज्य / 31 मव - वे सबके सब तामिल हैं। चम और मलाया लोग प्रायः मुसलमान है। उनमें से कोई 25 हजार चम, जो अनाम के वासी हैं, वहुत प्राचीन ब्राह्मण धर्म के अनुयायी है । शैव है और अपने को 'चमजात' कहते हैं । खोज से मालूम होता है कि कोई ढाई हजार वर्ष पूर्व भारतवासियों ने पहले- पहल स्याम के पूर्वी प्रदेशों और द्वीपों को जाना आरम्भ किया । बहुत करके वे लोग प्राचीन कलिङ्ग और तैलङ्ग देश के ममुद्र तटवर्ती प्रान्तों से उस तरफ़ गये; क्योंकि वही प्रान्त वर्तमान अनाम और कम्बोडिया आदि प्रान्तो के निकट है । उस समय ममुद्रमार्ग से वहाँ जाने में विशेष सुभीता रहा होगा। भारतवासियो का ख़याल था कि वर्तमान इंडो-चायना के दक्षिणी और पूर्वी भाग धन-धान्य से बहुत अधिक सम्पन्न है। इसी से उन भागों को वे लोग 'सुवर्ण-भूमि' कहते थे । जाने वालों में से कुछ तो बनिज-व्यापार करने वाले थे, कुछ सैनिक थे और कुछ ब्राह्मण थे। पहले तो ये लोग रुपया पैदा करने ही के लिए जाते रहे होगे और धीरे धीरे उनमें से बहुत लोग वही बस गये होगे । उनकी मख्या बढ़ने पर धर्म-प्रचार और पौरोहित्य कार्य करने वाले भी पीछे से जाने लगे होंगे। इस तरह का आवागमन सैकडो वर्षों तक जारी रहने पर वहाँ गये हुए भारतवामियों के उपनिवेश, विशेष विशेष जगहो में, हो गये होगे । उस समय उन देशो मे रहने वाले लोग मभ्य और शिक्षित न थे । उन पर भारतवासियो के आचार-व्यवहार और धर्म आदि का प्रभाव पडे बिना न रहा होगा । बहुत सम्भव है मौ दो सौ वर्ष साथ साथ रहने पर, उन्होने वहाँ वालो को अपने धर्म का अनुयायी बना लिया हो, असभ्यों को सभ्यता प्रदान की हो और उनमें से बहुत को अपना दास, सेवक या कर्मचारी भी बना लिया हो । ईसवी सन् की तीसरी शताब्दी में पत्थरो पर खुदे हुए कई लेख इंडो-चायना में मिले है । वे सब विशुद्ध संस्कृत में हैं। इससे सूचित होता है कि उस समय भारवासियो का आधिपत्य दृढ़ता को पहुँच गया था। इससे यह भी सूचित होता है कि उस समय हजार पाँच सौ वर्ष पहले ही से भारतवासी वहाँ जाने लगे होग। बिना इतना काल व्यतीत हुए विदेशी भारतवामियों की स्थिति वहाँ बद्धमूल न हुई होगी। संस्कृत भाषा का प्रचार ओर शिलालेखो पर ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख अन्य देशवासी अल्पकाल- स्थायी यात्रियों के द्वारा सम्भव नहीं। अतएव सन् ईसवी के कम से कम सात आठ सौ वर्ष पहले ही से भारतवासी वहाँ बसने लगे होगे। बौद्ध धर्म की उत्पत्ति सन् ईसवी के कोई तीन सौ वर्ष पहले हुई । अशोक के समय में उसने बड़ी उन्नति की । भारत के अधिकांश भागों में उसकी तूती बोलने लगी। बौद्ध श्रमण विदेशों में जाकर अपने धर्म का प्रचार करने लगे। इसमें सन्देह नही कि वे लोग प्राचीन चम्पा (अनाम) और कम्बोडिया(५.म्बोज) में भी पहुंचे और वहाँ भी अपने धर्म का प्रचार किया। धीरे-धीरे हिन्दू धर्म के अनुयायियों के साथ ही साथ वहाँ बौद्ध धर्म के अनुयायियों की भी संख्या बढ़ गई और ये दोनों सम्प्रदाय वाले वहाँ पाये जाने लगे। चम्पा और काम्बोज में जब से बौद्ध धर्म पहुंचा, बराबर उन्नति करता गया। वह वद्धिष्णु धर्म था; भारतवासियों की तत्कालीन प्रकृति के वह अनुकूल था। इसी से
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