डाक्टर एल० पी० टैसीटोरी/341 दो-तीन वर्ष तक आपने बड़ी खूबी से किया। इन रचनाओं का एक सूचीपत्र आपने तैयार कर दिया। अपने काम की दो मालों की रिपोटें भी आपने लिखीं। उनमें कितनी ही महत्त्वपूर्ण और अज्ञात बातों का उल्लेख आपने किया। 'रतनसिंह राठोड़ की वचनिका' नाम की एक ऐतिहासिक पुस्तक का मम्पादन भी आपने किया। यह पुस्तक पुरानी मारवाड़ी भाषा में है। भारत आने पर आचार्य विजयधर्म सूरि महाराज के पास बैठ कर आपने जैन- साहित्य तथा और भी कितने ही विपयो के ज्ञान को पुष्ट और पल्लवित किया। आचार्यजी पर आपकी बड़ी श्रद्धा थी। उनके साथ आप भी पैदल यात्रा करते थे। एक दफ़े सादड़ी से रानकपुर तक आप आचार्यजी के संघ के साथ साथ बराबर पैदल गये । पीछे से आप बीकानेर में जा रहे थे। वहाँ के पास-पड़ोस के गांवों में आप पुराने शिलालेखों, सिक्कों तथा अन्य वस्तुओं का संग्रह करते थे। यदि आप कुछ दिन और जीते तो बीकानेर में प्राचीन वस्तुओं का एक बहुत अच्छा संग्रहालय संस्थापित हो जाता । अब भी वहाँ डाक्टर साहब की संग्रहीत वस्तुओं की अच्छी संख्या एकत्र है । मोत्रो की बात है। इटली में रह कर, बिना किसी की सहायता के, इस मनस्वी महापुरुष ने भारत की कितनी ही नई पुरानी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। अपनी इस ज्ञानप्राप्ति की पिपासा को दूर करने के लिए वह इतनी दूर, समुद्र पार करके, इस देश में भी आया और यहीं खप गया । एक हम हैं जो पुरानी भाषाओं की तो कथा ही क्या, अपनी निज की मातृभाषा में भी शुद्ध शुद्ध पत्र-व्यवहार तक नहीं कर सकते और जो लोग कर भी सकते हैं उनमें से अधिकांश अपनी भाषा लिखना अपनी इज्जत घटाना समझते हैं । इन अन्धे और अनुदार विचारों के गर्त से निकलने की बुद्धि भगवान् हमें शीघ्र ही दे, यही उससे हमारी प्रार्थना है। [मार्च, 1920 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित ।
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