336 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली ख़र्च किया जाता है, वहाँ के मुख्य अधिकारी कौन कौन हैं, इत्यादि सभी बातें उन्हें मालूम क्रोध तो उन्हें छू तक नहीं गया । वे सदा हँसमुख देख पड़ते हैं । पारलियामेंट में क़ानूनी मसविदे पेश करते समय वे सदा कहा करते हैं कि-"किसी बात को जिस दृष्टि से मैं देखता हूँ उसी दृष्टि से जब नक सभासद न देखेंगे तब तक उन्हें उनके कथन की यथार्थता न मालूम होगी।" एडमिरल टिरपिज़ रोज़ मवेरे सात बजे आफ़िस में पहुँचते हैं । जाते ही वे काम में भिड़ जाते हैं । पारलियामेंट में अपने कानूनी मसविदे पाम हो जाने का उन्हें इतना निश्चय रहता है कि मंजूरी मिलने के पहले ही वे उन ममविदों के सम्बन्ध के काम कम्पनियों को ठीके पर दे दिया करते है । उनके काम से प्रसन्न होकर कैसर ने उन्हें 'आर्डर आव् दी ब्लक ईगल' (Order of the Black Eagle) नाम की प्रतिष्ठित पदवी प्रदान की है। अच्छे कामों के लिए उन्हें कितने ही पदक दिये गये हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार से उनका सम्मान किया गया है। अब तक वही जर्मनी के जहाज़ी बेड़े के प्रधान अधिकारी थे । पर हाल में उन्हें अपना पद त्याग करना पड़ा है । सुनते हैं, सबमैरीन नामक जहाज़-नाशनी पनडुब्बी नावो द्वारा मित्र-त्रितय के जहाज नाश करने की निन्द्य नीति के सम्बन्ध में कैसर से उनकी अनबन हो गई है। इसी से उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। टिरपिज़ जैसे निपुण जलयुद्ध-विशारद और राजनीतिज्ञ हैं वैसे ही दूरदर्शी भी है। वर्तमान महासंग्राम रूपी विशाल और जटिल वट-वृक्ष का मूक्ष्म बीज टिरपिज़ ही का बोया हुआ है। टिरपिज़ सत्रह वर्ष तक एडमिरल के पद पर रहे । बिस्मार्क को छोड़कर इतनी अधिक अवधि तक कोई भी जर्मन अधिकारी आज तक इतने बड़े पद पर नहीं रहा । जर्मनी और इंगलैंड दोनों की मित्रता पर पानी फेरने का दोष टिरपिज़ ही पर है। टिरपिज़ अब बुड्ढे हो चले हैं। उनकी उम्र इस समय 68 वर्ष की है । जर्मनी के वर्तमान जहाजी बेडे को टिरपिज़ का जीता-जागता स्मारक ही समझिए । [जुलाई, 1916 में प्रकाशित । 'चरित्र-चित्रण' में संकलित। म.दि.10.4
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