बकर टी0 वाशिंगटन-2 बुकर टी० वाशिगटन अब संसार में नहीं है । गत 17 नवम्बर को बुकर महाशय की मृत्यु मे ससार की एक उदार आत्मा का नाश हो गया। अमरीका के अमभ्य हवशियों को एक महान जाति में परिणत करने वाला यह महा पुरुष अज्ञात पिता से एक दासी की सन्तान था। लट्ठो के बने हुए एक झोंपड़े (Log Cabin) में, सन् 1858 ईसवी मे इसका जन्म, अमरीका के वर्जीनिया प्रान्त में, हुआ। जिस समय की यह बात है उम समय यद्यपि अमरीका देश स्वतन्त्र हो चुका था, परन्तु उसने अपने अधीनस्थ हबशी आदि जातियो के साथ, उनको अपना ही सा मनुष्य समझ कर, जानवरों का सा व्यवहार करना नहीं छोड़ा था। बुकर की माता एक धनाढ्य अमरीकन की खरीदी हुई दासी थी और अपने मालिक के अन्य गुलामों के लिए रोटी बनाने का काम करती थी। रहने के लिए उस बेचारी के पास रसोई-घर की खपड़ेल का एक कोना था और सोने के लिए भूमि पर पुराने चिथड़ों की एक गुदड़ी। शीत-काल में सैकड़ों छेदों से हवा आकर उसे दुखी करती थी और गरमी में सूर्य के ताप के अतिरिक्त चूल्हे की धधक भी खूब झुलसाया करती थी । परिवार कितनी दरिद्रावस्था में था, इसका अनुमान इसी बात से हो सकता है कि बालक बुकर ने 12 वर्ष की आयु तक यह भी न जाना था कि सिर पर टोपी परमात्मा ने काले चमड़े वाले गुलामों के लिए पहनने को बनायी है अथवा केवल श्वेत चमड़े वाले प्रभुओ ही लिए ! एक वार बुकर ने अपने मालिक की लड़कियों को पुये खाते बाग़ मे देखा । वेचारे के मुंह में पानी भर आया। उसने ममा कि इस तरह के पुये खाना जिस दिन मुझे मिल जायगा उस दिन से बढ़कर मेरे लिए संमार में और कोई मुखकारी दिन न होगा। बुकर का लड़कपन खेतों पर काम करते और बाग़ो मे झाडू लगाते बीता । कुछ बड़े हो जाने पर मालिकों के खाना खाते समय मक्खियां उड़ाने के कार्य पर उसकी नियुक्ति हुई । पढ़ने लिखने का ऐसे बच्चों से सम्बन्ध ही क्या ? बुकर को यह ज्ञात ही न था कि कभी उसके भाग्य में पढ़ना लिखना भी बदा है । परन्तु हाँ, दो एक बार अपने मालिको की किताबें स्कूल तक पहुंचाने वह अवश्य गया था और स्कूल के दृश्य ने उसके मन में यह विचार उत्पन्न कर दिया था कि स्कूल में पढ़ने से अधिक स्वर्ग-लाभ भी आनन्ददायक नहीं हो सकता। लगभग इसी ममय अमरीका में गुलामों को स्वतन्त्रता देने तथा न देने वाले दोनों दलों में वागयुद्ध के बाद अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग की भी नौबत पहुँच गई । घमामान युद्ध हुआ । परन्तु सत्य की सदा ही जीत होती है । परिणाम यह हुआ कि हबशी जाति स्वतन्त्र कर दी गई। स्वतन्त्रता मिल जाने पर बुकर की माता अपने दूसरे बच्चों के पिता के पास
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।