पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१९

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बकर टी0 वाशिंगटन-1 मराठी-माहित्य में, हाल ही में, एक बहुमोल अन्य प्रकाशित हुआ है। बम्बई के 'मासिक मनोरंजन' के नाम से हिन्दी जानने वाले अपरिचित नहीं हैं। इस पत्र के उत्साही मम्पादक, श्रीयुत काशीनाथ रघुनाथ मित्र, ने अपनी-'मनोरंजक ग्रन्थ-प्रसारक मण्डली' के कार्यालय से लगभग पौन सौ पुस्तकें प्रकाशित की है। जिस पुस्तक का और उसके आधारभूत जिस विषय का- -अर्थात् बुकर टी० वाशिगटन के चरित्र का परिचय इस लेख में देने का संकल्प किया गया है उसका नाम है 'आत्मोद्धार'। यह उक्त मण्डली द्वारा इस ग्रन्थ के अतिरिक्त और कोई भी पुस्तक प्रकाशित न होती, तो भी देश-हित की दृष्टि से उसका उद्देश सफल हो जाता। सचमुच 'आत्मोद्धार' ऐसा ही प्रभावशाली ग्रन्थ है। जो लोग उसको अपनायेंगे और उसमें लिखी हुई बातों पर कुछ ध्यान देंगे वे निस्सन्देह अपना उद्धार करने में समर्थ हो जायेंगे। इस ग्रन्थ के लेखक श्रीयुत नागेश वासुदेव गुणाजी, बी० ए०, एल-एल्० बी० का नाम मराठी साहित्य-सेवको में बहुत प्रसिद्ध है । जब आपने बुकर टी० वाशिंगटन और उनके परोपकारी कार्यों का कुछ वर्णन समाचार-पत्रों में पढ़ा तब आपकी यह इच्छा हुई कि अमेरिका जाकर उस महात्मा का दर्शन-लाभ करें और उसकी संस्थाओं मे कुछ दिन रहकर अध्ययन करें। परन्तु द्रव्य के अभाव से आपकी यह सदिच्छा सफल न हुई। तब आपने यह निश्चय किया कि यदि शरीर द्वारा वहाँ नहीं जा सकते तो न सही, अन्तःकरण ही से बहुत सा काम किया जा सकता है। इसके बाद आपने पत्र-व्यवहार करके बुक र टी० वाशिगटन के परोपकारी कार्यों के विषय में जानने योग्य सब सामग्री एकत्र की। वाशिगटन के जीवनचरित की कुछ बाते 'आउट लुक' नामक मासिक पत्र में प्रकाशित हुई थी। उन्हें पढकर उनके अनेक मित्र उनसे अपना आत्मचरित लिखाने का आग्रह करने लगे थे। उनकी पोशिया नामक लड़की ने भी कई बार इस विषय में उनसे आग्रह किया । तब उन्होने 'Up from Slavery' नामक पुस्तक द्वारा अपना आत्मचरित प्रकाशित किया। 'आत्मोद्धार' इसी पुस्तक का मराठी-रूपान्तर है। इस मराठी पुस्तक में, ग्रन्थकार के एक मित्र की लिन्त्री हुई 24 पृष्ठो की एक भूमिका है। उसमें 'आत्मोद्धार' के अनेक महत्त्वपूर्ण विषयो की माम्मिक चर्चा की गई है। मराठी-ग्रन्थकार श्रीयुत गुणाजी का साहित्य-प्रेम तो प्रशंसनीय है ही; परन्तु इस ग्रन्थ की सामग्री एकत्र करने मे अपने दृढ निश्चय, धैर्य, यत्न आदि गुणों का भी परिचय दे दिया है। आपने मराठी भाषा की सेवा करने में जो उत्साह प्रकट किया है वह लोगो के लिए णीय है। यह ग्रन्थ पढने से यह बात अच्छी तरह मालूम हो जाती है कि जब मनुष्य अपने उद्धार के लिए स्वयं यत्न करने लगता है तव परमेश्वर भी उसकी सहायता करता है। आत्मोद्धार के लिए दृढ़ विश्वास और स्वावलम्बन ही की आवश्यकता है। बुकर टी० वाशिगटन का जीवनचरित इस बात का ०