284 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली नौकरी की हालत में आप बड़े उच्च पद पद रहे हैं, जैसे, गवर्नमेंट के सहायक मन्त्री, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार, सिन्ध के जुडिशल कमिश्नर, गवर्नमेंट के न्याय, नीति और शिक्षा विभागों के मन्त्री और हाईकोर्ट के जज, जब आप न्याय-विभाग के अधिकारी हुए तव आपने अपने उन विचारों को कार्यक्षेत्र में लाने का उपक्रम किया जो पहले से आपके दिल में जमे हुए थे । आपका ख़याल था कि भारतवर्षीय राजों की स्थिति सुदृढ़ होनी चाहिए। क्योंकि, आपके विचारानुसार भारतवासी एक उत्तम देशी राज्य में अधिक आनन्द से रह सकते हैं। इसलिए ज्यों ही आप इस पद पर आये, बम्बई के गवर्नर की सहायता से निम्नलिखित कार्य किये- (1) राजकोट में एक 'राजकुमार कालेज' खुलवाया । इस कालेज की स्थापना से आपका यह अभिप्राय था कि राजे, महाराजे उत्तम शिक्षा पाकर अपने राज्य-कार्य करने के योग्य हो। (2) भावनगर में आपने सम्मिलित शासन की प्रथा चलाई । अब तक राजा के बालिग़ होने तक राज्य एक पोलिटिकल एजेंट के सुपुर्द कर दिया जाता था, नतीजा यह होता था कि राज्य का रूप ही प्रायः बदल जाया करता था। इसलिए सम्मिलित शामन की प्रथा चलाई गई । मतलब यह कि राजा की अनुपस्थिति में राज्य का रूप न बदले और गवर्नमेंट की नीति के अनुसार काम भी हो। (3) काठियावाड़ के लिए ग्रामिया अदालत की स्थापना, रियासतों के झगड़े ते करने के लिए की गई। सर विलियम ने वेडरबर्न इस देश के शासन में बड़ी ही महानुभूति दिखलाई। वे यद्यपि विदेशी हैं, तथापि उन्होने ऐसे काम किये हैं कि इस देश के वासी उनकी सेवा को कदापि नही भूल सकते । श्रीमान् दादाभाई नौरोजी, माननीय रानाडे, मर फ़ीरोजशाह मेहता, माननीय तैलङ्ग, माननीय बदरुउद्दीन तैय्यबजी, बाबू सुरेन्द्रनाथ बैनर जी, माननीय गोखले, माननीय मदनमोहन मालवीय आदि सबसे आप भली भांति परिचित रहे हैं । जब भारतवर्ष के सुधार का ख़याल आपको आया तब आपने इन लोगों की सहायता से पहले इस बात का निश्चय किया कि दाल में कहाँ काला है ! आपने बहुत जल्द इस बात को जान लिया कि इस देश की दरिद्रता ही एक मात्र सुधार की वाधक है । आपकी गय मे इस जीर्ण रोग का इलाज यह निश्चित हुआ कि सरकार कर लेना कम करे, काश्तकारों को रुपया थोड़े मूद पर दिया जाय, और आपस के झगड़े अदालत में से होने के बदले आपम में से किये जायें। इसलिए आपने तीन प्रम्नाव किये- (1) दक्षिण में इस्तमगरी बन्दोबस्त (2) कृषि-बैंकों की स्थापना (3) पंचायतों की स्थापना प्रथम प्रस्ताव के विषय में आपने मनुस्मृति के आधार पर यह दिखलाया कि प्रजा अपनी आमदनी का राजांश रुपये के रूप में म देकर अनाज अथवा और वस्तु के रूप में दे और वह अंश आमदनी का सोलहवां हिस्सा नियत किया जाय । आपने
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२८८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।