पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२८७

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सर विलियम वेडरबर्न-1 ईश्वर की कृपा से मनुष्य-जाति में कभी कभी ऐसे अलौकिक गुण-सम्पन्न पुरुष उत्पन्न हो जाते हैं जिनके चरित देखने, पढने और मनन करने तथा जिनके सारगभित सदुपदेशो के अनुमार कार्य करने से संसार का बहुत कल्याण होता है । हमारे चरित-नायक भी एक ऐसे ही महानुभाव हैं । आप दिसम्बर, 1910 की प्रभावशाली कांग्रेस के सभापति थे । एक बार पहले भी आप इस पद की शोभा बढ़ा चुके है । जिस कुटुम्ब में ये उत्पन्न हुए है वह ऐतिहामिक विचार से बहुत प्रसिद्ध और पुगना है । इस कुटुम्ब का वृत्तान्त 1296 ईसवी से बराबर इंगलैंड के इतिहास में मिलता आता है। इनके कुटुम्बी सदा से राजनैतिक विषयो मे योग देते आये हैं । इसी लिए राजनातक विषयो में योग देना आपके लिए स्वाभाविक बात है । आपका जन्म 25 मार्च 1838 ईसवी को स्काटलैंड देश की प्रसिद्ध राजधानी एडिनबरा में हुआ था। आप सर जान वेडरबन के तृतीय पुत्र हैं। भारतवर्ष से आपका सम्बन्ध कई पीढ़ियों से चला आता है। आपके पिता ने बम्बई की उच्च राजकीय सेवा में, 1807 ईमवी में प्रवेश किया और 30 वर्ष तक भारतवर्ष में रहे। आपके ज्येष्ठ भ्राता 1844 ईसवी में बगाल के उच्च गजकीय सेवा-विभाग में आये और 1857 ईसवी तक यहाँ रहे। मर विलियम वेडरबन भी इसी विभाग में घुसे और इसकी परीक्षा में बडी योग्यता के साथ उत्तीर्ण हुए। आपका नम्बर उत्तीर्ण विद्यार्थियो में तीसरा था। पास होने पर आपको बम्बई हाते मे 1860 ईसवी में नौकरी मिली। 1887 ईसवी तक आप यहाँ रहे । जब सर विलियम ने 1887 ईसवी में नौकरी छोड़ी, बम्बई के गवर्नर लार्ड रो ने एक खास गैजट में आपके नौकरी से अलग होने पर शोक प्रकट करते हुए कहा- "सर विलियम वेडरबन का सम्बन्ध गवर्नमेंट से बहुत घनिष्ठ रहा है । कुछ दिनों तक वे अस्थायी चीफ़ सेक्रेटरी रहे और कुछ दिनों तक कौसिल के मेम्बर । इन दोनो पदों पर रहकर उन्होने गवर्नमेंट को अपने उत्तम विचारों से बड़ी सहायता दी। उनके शिक्षा विषयक उत्साह ने और उनके इस देश के नैतिक और आर्थिक उन्नति विषयक विचारों ने उन लोगों के दिलों में घर कर लिया जिनके लिए उन्होने इतना परिश्रम किया है।" यह सम्मान तो बम्बई-सरकार की ओर से हुआ; परन्तु क्या आप समझते हैं कि बम्बई के बुद्धिमान सज्जनों ने देश के ऐसे शुभ-चिन्तक का यथोचित सम्मान नहीं किया। नहीं, बम्बई-निवासियो ने उनकी यादगार के लिए एक बहुत बड़ा चन्दा किया, जिसमें से कुछ रुपये से सर विलियम का चित्र तैयार कराया गया जो अब तक बम्बई की प्रेसीडेन्सी असोसियेशन के कमरों की शोभा बढ़ा रहा है। बाक़ी रुपया इस असोसियेशन को एक ऐसा फंड खोलने की मरज से दे दिया गया जिसकी आय से बम्बई-वासियो की राजनैतिक दशा का सुधार हो।