पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२७७

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डाक्टर कीलहान - इंडियन ऐंटिक्वेरी में डाक्टर एफ० कीलहान की मृत्यु का समाचार पढ़कर दुःख हुआ। 19 मार्च 1908 को जर्मनी के गार्टिजन नगर में आपका शरीरान्त हुआ। डाक्टर कीलहान बड़े नामी संस्कृतज्ञ थे । योरप वालो में जो लोग संस्कृत जानने का दावा रखते हैं, उनमें से एक कीलहान ही ऐसे थे जिन्होंने संस्कृत-व्याकरण में अच्छी पारदर्शिता प्राप्त की थी। वैदिक साहित्य और खोज के कामों को छोड़कर संस्कृत-सम्बन्धी और बातों में पश्चिमी पण्डितो की पहुंच राम का नाम ही होती है । व्याकरण का तो वे प्रायः मुखचुम्बन ही करके छोड़ देते हैं। पर डाक्टर कीलहान व्याकरण के आचार्य थे । हाँ, आचार्य हुए थे वे हिन्दुस्तानी ही पण्डितों की बदौलत। डाक्टर साहब जर्मनी के निवासी थे। वहीं आपने संस्कृत पढ़ी थी । संस्कृत में कुछ विज्ञता प्राप्त कर लेने पर इस भाषा के अध्ययन से आपको इतना आनन्द मिलने लगा कि आपने इसे बराबर जारी रक्खा और अपने संस्कृत-ज्ञान को बराबर बढाने ही गये। कुछ दिन तक आपको अध्यापक मोक्षमूलर के समागम का भी लाभ मिला। मोक्षमूलर उस समय ऋग्वेद का सम्पादन कर रहे थे। उस काम में कीलहान ने उनकी बड़ी मदद की। शायद अध्यापक मोक्षमूलर ही की सिफ़ारिश से उन्हे पूने के डेकन- कालेज में संस्कृताध्यापक की जगह मिली। आपने भारत आने के पहले ही योरप में अपने संस्कृत-ज्ञान के विषय में बहुत कुछ नामवरी प्राप्त कर ली थी। आप अच्छे आलोचक और गुण-दोष-विवेचक समझे जाने लगे थे । जर्मनी के लेपजिक नगर से आप शान्तनव के फिट्-सूत्रों का सम्पादन करके, 1866 ईसवी में, उन्हें प्रकाशित कर चुके थे । उनको देखने से मालूम होता है कि व्याकरण में उस समय भी आपको अच्छा अभ्यास था। फिट्-सूत्रों के प्रकाशित होने के कुछ ही समय बाद आपको भारतवर्ष आना पड़ा । वहाँ आप पूना के डेकन-कालेज में भारतवासियों को संस्कृत पढाते रहे। डाक्टर साहब के दो-एक छात्रों से हमने सुना है कि आप अच्छी संस्कृत पढ़ाते थे। पर आपका संस्कृत-उच्चारण सुनकर बड़ा कौतूहल होता था। भारत में आकर अनन्त शास्त्री मेंढरकर से आपने यथानियम व्याकरण पढ़ा। कोई बात पढ़ने से आपने बाक़ी नहीं रक्खी। आप अच्छे वैयाकरण हो गये। इसका फल यह हुआ कि आपने नागोजी भट्ट के 'परिभाषेन्दुशेखर' का सम्पादन करके उसे कई भागों में प्रकाशित किया। उसका आपने अनुवाद भी अंगरेजी में किया और यथास्थान टीका-टिप्पणियों से भी उसे भूषित किया। इतने ही से आपको सन्तोष न हुआ । आपने पतंजलि के व्याकरण-महाभाष्य का भी सम्पादन अंगरेजी में किया। नौ-दस जिल्दों में यह पुस्तक समाप्त हुई। आपने बड़ा काम किया। इन ग्रन्थों के सिवा आपने व्याकरण