मुग्धानलाचार्य / 271 शरीर का स्पर्श हो जाने से है; सब अंगों में सुख होने से बिलकुल नही है । प्रिय वस्तु को देखने अथवा छूने से सुख मारे शरीर को होता ही है। उसके कहने की क्या जरूरत ? उँगली में आलपिन चुभ जाने से वेदना का अनुभव यदि सारे शरीर को होता है तो पुत्र का स्पर्श हाथ, छाती, या मुख में हो जाने पर भी मारे शरीर मे सुख-संचार होना चाहिए। खैर, यह तो एक बात हुई । दूसरी बात यह है कि आचार्य ने कालिदाम के 'कृतिनः' पद का अनुवाद 'Father' (पिता) जो किया है सो भी ग़लत है। आचार्य को 'पिता' शब्द से बड़ा प्रेम मालूम होता है । 'गृहिणः' (गृहस्थ) का भी अर्थ आपने पिता कर दिया और 'कृतिनः' का भी ! 'कृती' का अर्थ है पुण्यवान, भाग्यशाली । मो लड़के का पालन-पोषण करने वाले पिता, चचा, मामू, भाई मभी पुण्यवान् और सौभाग्य- शाली हो मकते हैं। तीसरी बात यह है कि मुग्धानलाचार्य ने 'अङ्कात्प्ररूढ.' का अर्थ जो 'from whose loins he sprang' किया है सो अशुद्ध होने के सिवा उद्वेगजनक भी है। कालिदास का मतलब है कि जिमके अंक में, गोद में, उत्संग में, खेल-कूदकर यह इतना बड़ा हुआ है उसे न मालम इसका स्पर्श कितना मुखदायक होगा । पर आचार्य के अँगरेज़ी-बाक्य का अर्थ है, "जिमकी कमर से यह निकला या निकल पडा है उसके अन्त.. करण में यह न मालूम कितना सुख उत्पन्न करेगा ?" अब सोचने की बात है कि भला कालिदाम ऐमी जघन्य बात कभी अपने मुंह से निकाल सकते हैं ? 'प्ररूढ.' का अर्थ यहाँ बढ़ने या बड़े होने का है, पैदा होने या निकलने का नहीं। 'Loins' का अर्थ अंगरेजी कोशकार 'कमर' ही लिखते हैं, पर आचार्य ने उसे 'Lap के अर्थ में प्रयोग किया है ! सम्भव है, इस शब्द का अर्थ 'गोद' भी होता हो । इसके प्रमाण अँगरेजी विद्या विशारद विद्वान् हैं । वही इमका निर्णय करें। डाक्टर मेकडॉनल ने अपने सस्कृत-भाषेतिहास के 12वें अध्याय में छोटे-छोटे काव्यों पर भी कुछ लिखा है। 'ऋतुसंहार' की आपने बड़ी तारीफ़ की है। इस काव्य के तीसरे सर्ग में शरदृतु का वर्णन है। उसका आदिम श्लोक है- काशांशुका विकचपद्यमनोज्ञवक्ता सोन्मादहंसरवनूपुरनादरम्या । आपक्वशालिरुचिरा तनुगात्रयष्टिः प्राप्ता शरन्नववधूरिव रूपरम्या । अर्थात् नव-विवाहिता वधू की तरह रमणीय रूपवाली शरद् आ गई। काश अथवा कास के फूल इसकी पोशाक है। खिला हुआ मनोमोहक कमल-समूह इसका मुख है। उन्मत्त हंसों का शब्द इसके नूपुरों की ध्वनि है। पके हुए धान के खेतों की शोभा इसके पतले गात की सुघरता है । इसका अर्थ मुग्धानल साहब करते हैं- “Next comes the autumn, beauteous as a newly wedded bride, with face of full-blown lotuses, with robe of sugarcane and ripening rice, with the cry of fiamingoes representing the tinkling of her anklets," इसमें आपने 'तनुगात्रयष्टि:' का अर्थ करने की जरूरत ही नहीं समझी; और-
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