पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२६४

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260/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली उन्नति के लिए बहुत प्रयत्न किया । यह आप ही के प्रयत्न का फल है जो वहाँ इस समय 3 कालेज और 203 स्कूल है और उनमें 25,856 विद्यार्थी पढ़ते हैं । जापान में भी कर्नल आलकट ने बौद्ध धर्म की बड़ी उन्नति की। अनेक व्याख्यान आपने दिये। बौद्ध धर्म के भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों को आपने अपने व्याख्यानो के प्रभाव से एक कर दिया। 1878 ईसवी में कर्नल साहब भारतवर्ष में आये और 1882 में आपने अपने निज के रुपये से ज़मीन वगैरह लेकर मदरास में थियासफिकल सोसायटी की इमारत बनवाई । यहाँ, 1891 में, मैडम ब्लेवस्की का शरीरपात हुआ। तब से इस मोसायटी का कार्य-सूत्र सर्वतोभाव से आप ही के हाथ रहा । आपने अपने उद्योग और अध्यवसाय से 31 वर्षों में, इस सोसायटी की कोई एक हजार शाखायें दुनिया भर में खोल दी । इस समय कोई देश ऐसा नही जहाँ इस सोसायटी की शाखा न हो। आप पर और मैडम ब्लेवस्की पर अनेक लोगों ने अनेक प्रकार की तुहमते लगाई; अनेक प्रकार से उनकी निन्दा की; अनेक अनुचित आक्षेप और आघात किये; पर उनकी बहुत कम परवा करके आप अपने सिद्धान्तो पर दृढ़ रहे और जिस काम को शुरू किया था उसे उसी उत्माह में करते रहे । फल यह हुआ कि आपके कितने ही विपक्षी इस समय आपकी बातो को मानने लगे हैं । सुनते है आपके सारे बड़े-बड़े काम महात्माओ की प्रेग्णा से हुआ करते थे। ऐसी ही प्रेरणा के वशीभूत होकर आप एनी बेसंट को अपने पद का उत्तराधिकारी बनाने की सिफ़ारिश कर गये हैं। कर्नल आलकट की बदौलत थियासफ़िकल सोमायटी से, एक बात जो सबसे अधिक महत्त्व की हुई है, वह यह है कि इस देश के अँगरेजी पढे विद्वानो के हृदय में अपने देश की विद्या और शास्त्रादि पर श्रद्धा का अकुर जम गया है । यह कुछ कम लाभ नही। [अप्रैल, 1907 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । "विदेशी विद्वान्' पुस्तक में संकलित ।]