डाक्टर जी० थीबो | 247 डाक्टर थीबो को गणित-शास्त्र से भी प्रेम है। उन्होंने ज्योतिष पर जो निबन्ध लिखे हैं उनसे इस बात का प्रमाण मिलता है। जब वे काशी से प्रयाग बदल आये और म्योर कालेज मे अंगरेजी भाषा तथा दर्शन-शास्त्र के अध्यापक नियत हुए तब उन्होंने अपने गणित-शास्त्र के ज्ञान को और भी उन्नत किया। अवकाश पाने पर वे गणित-शास्त्र का अभ्याम करते थे और यदि कोई बात समझ में न आती थी तो गणित-शास्त्र के अध्यापक बाबू रामनाथ चैटर्जी से पूछ लेते थे। अपनी जाति या अपने पद का उन्हें ज़रा भी घमण्ड न था और न अब है। अपने से कम महत्त्व के पद वाले हिन्दुस्तानियों से कोई बात पूछने में उन्हें कभी पसोपेश नहीं हुआ। अँगरेजी और संस्कृत पढ़ाने के लिए बनारस कालेज में जो अध्यापकी का पद था वह 1877 ईमवी में तोड़ दिया गया। इस पद पर थीवो माहव मिर्फ दो वर्ष रहे। इसके बाद कुछ दिनो तक उन्होंने स्कूलों के इन्स्पेक्टर का काम किया । परन्तु शीघ्र ही वे बनारम कालेज के अध्यक्ष, अर्थात् प्रिन्सिपल, कर दिये गये। 1888 ईसवी तक आप इस पद पर रहे। संस्कृत की प्रथमा, मध्यमा और आचार्य-परीक्षायें उन्होंने निकाली। कुछ दिनों क लिए वे पंजाब के रजिस्टरार हो गये। पर फिर इसी प्रान्त को लौट आये और प्रयाग के म्योर कालेज में अध्यापक हुर । तब से अन्त तक वे इसी कालेज में रहे। गफ़ माहब के पेनशन लेने पर ये म्योर कालेज के अध्यक्ष हो गये। थीवो साहब छोटे-छोटे कालेजो के खिलाफ़ है और थोड़ी उम्र में बड़ी-बड़ी परीक्षाओं को पाम कर लेना भी आपको पसन्द नहीं। आपकी राय है कि अच्छे-अच्छे कालेजों में उपयुक्त उम्र के लड़को को रखने हो से लाभ है । कच्ची उम्र में विद्या कच्ची रह जाती है और छोटे-छोटे कालेजों में पढाई अच्छी नही होती। अब आपको इलाहाबाद-विश्वविद्यालय के रजिस्टगर का पद मिला है । टेक्स्ट बुक कमिटी के मेम्बर भी आप पूर्ववत् बने रहेंगे । इस कमिटी मे शामिल रहकर थीवो साहब ने बहुत कुछ काम किया है। संस्कृत और हिन्दी की पुस्तकों के चुनाव मे तो आपने जो काम किया है वह बहुत ही प्रशंसनीय है। हिन्दी के प्रेमी शायद यह न जानते होगे कि थीबो साहब शुद्ध और परिमार्जित हिन्दी के कितने पक्षपाती हैं और जो लोग अफमरों की हाँ में हाँ मिलाकर हिन्दी को उर्दू बनाने की सिफारिश करते हैं उनकी गय का उन्होने कितना विरोध किया है। अभी बहुत दिन नही हुए, गवर्नमेंट ने हिन्दी-उर्दू की रीडरो के लिए इनाम की नोटिम दी थी। रीडरें जब बनकर तैयार हुई और एक विशेष कमिटी में पेश की गई तब थीबो साहब एक बहुत ही प्रसिद्ध और प्रभावशाली पुस्तक-प्रकाशक की रीडरों के खिलाफ़ राय देने से ज़रा भी न हिचके । कारण यह था कि उनमें अनुचित बातें थीं। आपकी न्यायशीलता का यह उत्तम उदाहरण है। डाक्टर थीबो ने 'पञ्चसिद्धान्ति का' और शंकर तथा रामानुज-भाष्य-युक्त वेदान्तमूत्रों का, निज सम्पादित, बहुत उत्तम संस्करण प्रकाशित किया है। वराहमिहिर पर आपने टिप्पणियां लिखी हैं और मीमांसा तथा ज्योतिष-वेदांग पर कितने ही निबन्ध 1
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