242 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली के कारण विचलित नहीं हुआ। उसे आडम्बर बिलकुल पसन्द न था । इससे उसका खर्च भी कम था । जो कुछ उसे मिलता था उसी से वह सन्तुष्ट रहता था। यद्यपि अपनी पूर्वोक्त दोनों पुस्तकें छपाने में उसका बहुत सा रुपया बरबाद हो गया नथापि उसने किसी से आर्थिक सहायता नहीं ली । कुछ उदार लोगों ने उसकी सहायता करना भी चाहा; पर उसने कृतज्ञतापूर्वक उसे लेने से इनकार कर दिया। पुस्तक प्रकाशन में स्पेन्सर की कोई 15,000 रुपये की हानि हुई। यह सुनकर अमेरिका के कुछ उदार लोगों ने उसे 22,500 रुपये भेजे । परन्तु उसने यह रुपया भी लेना नहीं स्वीकार किया। हर्बर्ट स्पेन्सर की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक 'सिस्टम आफ़ सेन्थैटिक फ़िलासफी' (A System of Synthatic Philosophy) अर्थात् संयोगात्मक तत्त्वज्ञान-पद्वति है। 1860 ईसवी में उसे स्पेन्सर ने लिखना शुरू किया । बीच में उसे धन-सम्बन्धी और शरीर-सम्बन्धी यद्यपि अनेक विघ्न उपस्थित हुए तथापि 36 वर्ष तक अविश्रान्त परिश्रम करके उसे उसने समाप्त ही करके छोड़ा । इस पुस्तक में उसने अपने सिद्धान्तों का प्रति- पादन बड़ी ही योग्यता से किया है। संसार में जो कुछ दृश्य अथवा अदृश्य है मबकी उपपत्ति उसने अपने उत्क्रान्ति मत के आधार पर सिद्ध कर दिखाई । इस प्रचण्ड पुस्तक को उसने पांच भागों में विभक्त किया और दस जिल्दों में प्रकाशित कराया। उनका विवरण इस तरह है- 1. फ़स्ट प्रिंसिपल्स (First Principles)अर्थात् प्राथमिक सिद्धान्त, 1 जिल्द । 2. प्रिमिपल्स आफ़ बायोलजी (Principles of Biology) जीवनशास्त्र के मूलतत्त्व, 2 जिल्द । 3. प्रिमिपल्स आफ माइकालजी (Principles of Psychology) मानमशास्त्र के मूलतत्त्व, 2 जिल्द । 4. प्रिंसिपल्म आफ सोशियालजी (Principles of Sociology) समाजशास्त्र के मूलतत्त्व, 3 जिल्द। 5. प्रिंसिपल्स आफ़ एथिक्म (Principles of Ethics)नीतिशास्त्र के मूलतत्त्व, 2 जिल्द। स्पेन्सर के इस ग्रन्थ ने उसे इस नश्वर संमार मे अमर कर दिया। उसका नाम देश-देशान्तर में विदित हो गया । वह वर्तमान युग के तत्त्वज्ञानियों का राजा माना जाने लगा । इस पुस्तक के प्रथम भाग के दो खण्ड हैं। एक का नाम अज्ञेय मीमांसा (The Unknowable) और दुसरे का ज्ञेय मीमांमा (The Knowable) है। हमारी प्रार्थना है कि जो मज्जन इम पुग्नक को पढ़ सकते हो वे एक बार अवश्य पढ़ें; और स्पेन्मर के प्रकृति-पुरुष आदि विषयक सिद्धान्तो का ज्ञान प्राप्त करें; और इस बात का भी विचार करें कि इस विषय में इस देश के तत्त्वज्ञानियो और स्पेन्मर के सिद्धान्तो मे क्या तारतम्य इस इतनी बड़ी पुस्तक के प्रकाशित करने में स्पेन्सर को अनेक कठिनाइयाँ हुईं। किसी ने उसे छापना मंजूर न किया। छापे कोई क्यों ? कोई ऐमी किताबों को पूछे भी? निदान लाचार होकर स्पेन्सर ने इस पुस्तक के थोड़े-थोड़े अंश को त्रैमासिक पुस्तक के
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