पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२२८

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प्रसिद्ध पहलवान सैंडो सैंडो माहब एक प्रमिद्ध पहलवान हैं । वे जर्मनी के रहने वाले है। उनका जन्म 1868 ई० में हुआ था। लड़कपन में वे बहुत निर्बल थे; उनका शरीर भी दुबला पतला था कुछ दिनों में उनको अपनी निर्बलता पर खेद हुआ और कसरत करके अपने शरीर को वे दृढ करने लगे। कई वर्ष के परिश्रम से उनकी इच्छा पूर्ण हुई। इस समय ये इतने बलवान है कि उनकी बराबरी करने वाला कोई विरला ही होगा। उनके शरीर की बनावट, उनकी छाती की चौड़ाई और उनकी भुजाओं के घेर को देखकर लोग अचरज करते हैं। तौल में सैंडो माहब तीन मन है; और ऊँचाई में 5 फुट 10 इंच। उनकी गरदन का घेरा 18 इंच और फैली हुई छाती का 62 इंच है। सैंडो साहब बड़े बलवान है। तार के मोटे मोटे रस्मों को पीठ और छाती के चारों ओर बांध कर छाती को फैलाकर, वे उन रस्सो को साहब में तोड़ डालते हैं । एक एक हाथ से एक एक घोड़े को वे अपने सिर तक उठा लेते है; घूसे से बड़े बड़े पत्थरो को चूर चूर कर देते हैं। अपनी भुजाओ पर मारे गये पत्थरों के दो टुकड़े कर डालते है; चालीम चालीस मन की लोहे की चादरें पीठ पर उठा लेते हैं। एक बार अमेरिका में उन्होंने एक भयानक सिंह के साथ तीन बार कुश्ती लड़ी और तीनों बार सिंह को उन्होंने पछाड़ दिया। तीसरी बार तो मिह उनसे इतना डर गया कि वह उनके सामने कुत्ते के समान खड़ा रह गया; कान तक उसने न हिलाये । सैंडो साहब ने लण्डन में एक अखाड़ा बनाया है। वहां वे लोगों को कसरत करना मिखलाते हैं और उनके शरीर को सुडौल और बलवान बनाने की शिक्षा देते हैं। उन्होंने इस विषय की किताबें भी लिखी हैं । उनसे 'डम्बेल' मशहूर हैं। यही सैंडो साहब हिन्दोस्तान आते हैं। इस संख्या के निकलते निकलते शायद आ भी जायें। इनके साथ में और भी कई पहलवान हैं। ये पहले पहल अपनी कसरत बम्बई में दिखलायेंगे और व्यायाम सम्बन्धी व्याख्यान भी देंगे। फिर आप यहाँ के और और शहरों में भी, इसी निमित्त, घूमेंगे। सँडो साहब के उदाहरण से यह बात सिद्ध होती है कि दुबले-पतले और निर्बल मनुष्य भी शरीर-सम्बन्धी नियमों के अनुसार रहने और अच्छी प्रकार कसरत करने से बलवान हो सकते हैं। जिनके शरीर में बल होता है वे सदैव निरोग रहते हैं । बलवान और निरोग होना मनुष्य के लिये बहुत ही हितकर है। इसलिए शरीर को बली बनाने की ओर अवश्य ध्यान रखना चाहिए। [नवम्बर, 1904 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित।) म.दि. 10-4