मारकुइस ईटो | 219 - वेदावेर में, कभी इसरागों में, कभी अजबू में और कभी टोकियो में रहते हैं । सुनने से तअज्जुब होता है, परन्तु उनकी कुल जायदाद 1,20,000 रुपये से अधिक नहीं। मारकुइस ईटो खलासी बनकर पहले पहल इंगलैंड पहुँचे । जहाज़ के खलासियों को कितना सख्त काम करना पड़ता है यह बात छिपी नहीं। परन्तु उस अधम और परिश्रम के काम को ईटा ने बड़ी मुस्तैदी से किया। जिस समय वे लन्दन पहुंचे, उनकी जेब में सिर्फ चार-पाँच रुपये थे। वहां उन्होंने पश्चिमी देशों की सभ्यता, उनकी राज्य- प्रणाली, उनकी युद्ध-विद्या और उनके कला-कौशल को यहाँ तक सीखा कि वहाँ से लौट- कर उन सब बातों की प्रतिच्छाया जापान में उन्होंने प्रकट कर दी। उनके बराबर स्वदेश- भक्त, दृढ़-प्रतिज्ञ, सत्य-प्रिय और नीति-निपुण पुरुप जापान में दूसरा नही । जापान का एकछत्र राज्य और वहाँ की पारलियामेंट उन्हीं के अद्भुत अध्यवमाय का फल है मारकुइस ईटो परिश्रम से बिलकुल नही डरते । जो खलामी का काम कर सकेगा वह क्या न कर सकेगा ? आराम क्या चीज है, यह वे जानते ही नहीं। चार घण्टे से अधिक आप कभी नही सोते । सुबह जब तक उनके नौकर बिस्तर से उठते हैं और उनके लिए कहवा तयार करते हैं, तब तक वे वाग़ में टहला करते हैं। उनको कोई व्यमन छू तक नहीं गया। उनका सिर्फ एक ही निज का नौकर है, वही उनके सब काम करता है । शेष नौकर घर के काम के लिए हैं। उनके कमरे में जो सामान हे, सब मादा है। कुरमियाँ कई एक अवश्य हैं; पर आराम-कुरसी एक भी नही ! अच्छा चुम्ट उनको अधिक पसन्द है; वे तम्बाकू के सच्चे परीक्षक है । पोशाक उनकी सादी है। 'फैशन' का उनको बिलकुल ही ख़याल नहीं। मारकुइस ईटो यद्यपि इतने मीधे-माद है और यद्यपि उनके यहाँ धन की विशेषता नहीं, तथापि उनको पढ़ने लिखने का बेहद शौक है। योरप और अमेरिका मे आज तक जितनी उम्दा किताबें निकली है वे सब उनके पुस्तकालय में विद्यमान है। नई नई पुस्तकें भी निकलती जाती है, निकलने के साथ ही उनके हाथ में पहुँच जाती है। जितनी पुस्तकें उनके यहाँ हैं सब उन्होंने पढ़ी है। जो नई पुस्तक उनके हाथ आती है उसे आवरण-पृष्ठ (Title page) से लेकर अन्त तक वे बिना पढ़े नहीं रखते। पाँच से लेकर छ. घण्टे तक वे रोज़ पुस्तकावलोकन करते है । जर्मन, अंगरेजी, फ्रेंच और चीनी भाषाओं के वे उतने ही पण्डित हैं जितने कि विश्वविद्यालय के अध्यापक होते है । जापानी भाषा के विषय में तो कुछ कहने की जरूरत ही नही । ईटो के लिए साहित्य की उतनी ही जरूरत है जितनी धुवाँकश के लिए कोयले की जरूरत होती है। वे अत्यन्त मिष्ट-भाषी है । दूसरे देश की भाषाओं को वे उतनी ही शुद्धता से बोलते हैं जितनी शुद्धता से उन उन देशों के निवासी उन्हें बोलते हैं। उनका उच्चारण भी बहुत अच्छा है । परन्तु उनकी गिनती अच्छे वक्ताओ में नहीं। सर येडविन आरनल्ड जापान के विलक्षण भक्त थे। उन्होंने वहाँ बहुत दिनो तक निवास भी किया, वहाँ की भाषा भी सीखी और एक जापानी स्त्री से विवाह भी किया। जापान के विषय में उनको बहुत अधिक ज्ञान था। मारकुइस ईटो की उन्होने बड़ी बड़ाई की है-मिकाडो बादशाह के नीचे उन्होंने उन्ही की गणना की है। उन्होंने
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