लेडी जेन ग्रे/215 थी। एक दिन की बात है कि एलिजबेथ रानी के शिक्षक राजर ऐश्चम जेन के मकान पर गये । वहां उन्होंने देखा कि सब लोग बाग़ में शिकार खेल रहे हैं; परन्तु जेन को उन्होने वहाँ नहीं पाया । जब उन्होने नौकरो से पूछा तब उन्हें विदित हुआ कि जेन अपने कमरे में बैठी किताब पढ़ रही है । यह सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। बाग़ में न जाकर वे जेन के पास उसके कमरे में चले गये । बहाँ उन्होंने जेन को ग्रीस के प्रसिद्ध तत्त्ववेत्ता प्लेटो की किताब पढ़ते पाया । उन्होंने जेन से पूछा- "तुम क्यों शिकार खेलने नहीं गई ?" यह प्रश्न मुनकर 14 वर्ष की जेन ने अपना सिर ऊपर को उठा कर मुमकराते हुए उनर दिया, "मैं समझती हूँ, जो आनन्द मुझे प्लेटो की पुस्तक पढ़ने में मिलता है उम आनन्द की परलाहीं भी उन लोगो को शिकार में न मिलनी होगी। खेद की बात है, वे यही नही जानते कि आनन्द कहते किसे है !" इस सुशीला और चतुर जेन को मभी प्यार करते थे। उसके शिक्षको को इस वात का गर्व था कि उनकी विद्या-शिष्य जेन इतनी भाषाये जानती है । जेन के प्रधान शिक्षक डाक्टर एल्मर उससे बहुत ही प्रसन्न थे । डाक्टर एल्मर कोई साधारण मनुष्य न थे । वे प्रसिद्ध मनुष्य थे और पीछे से लन्दन के विशप (मव से बड़े पादरी) नियत हुए थे। जेन को ग्रीक भाषा अधिक प्रिय थी। अन्तिम पत्र, जो उसने अपनी बहन कथ गइन को लिखा, उसकी ग्रीक भाषा के बाइबिल (धर्मग्रन्थ) के एक कोरे पन्ने पर था। उसने ऐश्चम इत्यादि अनेक विदेशी विद्वानो को ग्रीक और लेटिन में लम्बे-लम्बे पत्र लिखे थे । वे पत्र अब तक विद्यमान हैं। लेडी जेन ग्रे के पिता के दो बड़े भाई थे । देव-योग से वे दोनों मर गये । इसलिए जन के पिता को ड्यूक की पदवी मिली। उस समय छठा एडवर्ड नामक राजा इंगलैंड के सिंहासन पर विराजमान था । उसकी उम्र बहुत कम थी; अपने राज्य का काम-काज वह स्वयं न देखभाल सकता था। इसके सिवा वह बीमार भी रहा करता था; बहुत दिनों तक उसके जीने की आशा न थी। इन कारणो से राज्य का सारा काम बड़े बड़े सरदार ही करते थे। जेन का पिता सफ़क का ड्यूक था। वैसा ही एक और सरदार नार्थम्बरलैंड का ड्यूक था। नार्थम्बरलैंड के ड्यूक को राज्य का प्रबन्ध करने में जेन का पिता बहुत महायता देता था । जब सब सरदारो ने जाना कि छठे एडवर्ड की मृत्यु निकट आ गई है तब वे इस बात का विचार करने लगे कि उमको अनन्तर इंगलैंड की गद्दी किसको मिलनी चाहिए । जेन का पिता चाहता था कि जेन इंगलैंड की रानी हो; क्योंकि वह इंगलैंड के राज-वंश की थी। और नार्थम्बरलैंड के ड्यूक चाहते थे कि उनके पुत्र जे० डडले के साथ जेन विवाह कर ले; जिसमें उसके रानी होने पर दोनों पक्ष वालो को सन्तोष हो । राजा एडवर्ड से भी कह सुनकर इस विषय की आज्ञा ले ली गई। उसने अपनी सगी बहन मेरी और एलिज़बेथ को राज्य का अधिकारी न स्वीकार कर जेन को ही स्वीकार किया। डडले लम्वे क़द के पुरुष थे; रूपवान् भी थे; स्वभाव भी उनका अच्छा था । जेन के साथ उनका विवाह, 1553 ईसवी में, हुआ। राजा ने विवाह के दिन उन दोनों के लिए अपनी ओर से बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण दिये । बड़े बड़े सरदारों, अपीरों और
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२१९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।