पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२०५

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कोपर्निकस, गैलीलियो और न्यूटन | 201 मरने के समय, उसने कहा कि “मैंने कुछ नहीं किया। मैं समुद्र के किनारे एक लड़के के समान खेलता सा रहा । समुद्र में अनेक प्रकार के रत्न भरे रहे; परन्तु दो-एक कंकड़- पत्थर अथवा सीपियों को छोड़कर और कुछ मेरे हाथ न आया।" अर्थात् ज्ञानरूपी समुद्र में से केवल दो-एक बूंद मुझे मिले; अधिक नहीं । सत्य है; विद्या की शोभा नम्रता दिखाने ही में है। [अप्रैल, 1903 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'विदेशी विद्वान' पुस्तक में संकलित।