कोपर्निकस, गैलीलियो और न्यूटन / 199 - भी कहता था तो उसे कड़ा दण्ड मिलता या। इसी बात को ब्रूनो नामक एक विद्वान् जीता ही जला दिया गया था और अण्टोनियो डिडामिनम 6 वर्ष तक कागगार में रह- कर वहीं मर गया था। इन्हीं कारणों से डरकर शायद गैलीलियो ने न्यायाधीश के आज्ञानुसार यह स्वीकार करके अपनी रक्षा की कि पृथ्वी के फिरने के विषय में मेरा मत ठीक नहीं। उमसे इस प्रकार स्वीकार कराकर न्यायाधीश ने उसे छोड़ दिया और वह अत्यन्त दुःखित होकर अपने घर लौट आया। गैलीलियो ने यद्यपि न्यायाधीश के सामने यह कह दिया कि मेरा मत ठीक नहीं; बाइबिल में जो कुछ लिखा है वही ठीक है; तथापि वह ग्रहों के विषय में ज्ञान प्राप्त करता ही रहा। 162 3 ईसवी में, रोम में, दूसग पोप धर्माधिकारी हुआ । वह गैलीलियो का मित्र था; इसलिए उसे फिर धीरज आया और उसने एक ऐसी पुस्तक लिखी जिससे यह सिद्ध होता था कि प्राचीन मन की स्थापना करने वाले मूर्ख थे। इस पुस्तक के निकलते ही लोगों ने फिर मैलीलियो की शिकायत पोप से की। इस पोप ने भी जब देवा कि प्राय: देश का देश ही गैलीलियो का विरोधी है तब उसने उसे फिर रोम में बुलाया। इम समय गोलियो 70 वर्ष का बुड्ढा हो गया था। पोप ने पहली बार का जैसा अभियोग फिर उस पर चलाया। कई महीने गैलीलियो रोम मे रहा और उसे वहाँ बहुत कष्ट मिला । अन्त में, अत्यन्त दुःखित होकर और बचने का कोई दूसरा उपाय न देखकर, न्यायाधीश की आज्ञा के अनुसार, उसने अपने मुख से इस प्रकार कहा-"यह झूठ है कि पृथ्वी चलती है। मुझसे अपराध हुआ है जो मैने वैसा कहा । मैं क्षमा मांगता हूँ । आज से जो आप कहेंगे उमी पर मैं विश्वास करूँगा। यदि फिर मुझसे ऐसी भूल हो तो आप जो दण्ड चाहें मुझे दें। मैं उसे चुपचाप सहन करूँगा। विवश होकर, यह सब कह चुकने पर गैलीलियो को इतना क्रोध आया और मन ही मन वह इतना जल-भुन गया कि पृथ्वी को लात मारकर उसने धीरे से कहा- "यह अब भी चल रही है।" कुछ दिनों में गैलीलियो अन्धा गया और 78 वर्ष की अवस्था में, 1642 ईसवी की 8वी जनवरी को, वह परलोक-वासी हुआ । गैलीलियो, अपने समय में, महाविद्वान् और महाज्योतिषी हो गया। उसकी बुद्धि बडी तीव्र थी। यदि गैलीलियो न उत्पन्न होता और दूरबीन बनाकर ग्रहो का सच्चा-मच्चा ज्ञान प्राप्त करता तो ज्योतिष- विद्या आज इस दशा को कभी न पहुँचती। जिस वर्ष गैलीलियो की मृत्यु हुई उसी वर्ष, अर्थात् 1642 ईसवी के दिसम्बर महीने की 25 तारीख़ को, इगलैंड मे, न्यूटन का जन्म हुआ। न्यूटन का बाप न्यूटन के लड़कपन ही में मर गया था। इसलिए उसकी मां ने उसके लिखने-पढ़ने का प्रबन्ध किया। 12 वर्ष की अवस्था में वह ग्रन्थम की गठशाला मे भरती हुआ। 6 वर्ष तक उसने वहाँ विद्याध्ययन किया। उसके अनन्तर वह केम्ब्रिज से ट्रिनिटी कालेज में पढ़ने लगा। न्यूटन ने 22 वर्ष की अवस्था में बी० ए० की और 25 वर्ष की अवस्था में एम० ए० की परीक्षा पास की । गणित और यन्त्र बनाने की विद्या से उसे बड़ा प्रेम था। पाठशाला में छुट्टी होने पर जब और लड़के खेल-कूद में लग जाते थे तब वह छोटे-छोटे
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