पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९८

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194/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली यही एंजिन लगाये जाने लगे। खेत काटना, भूसा उड़ाना, कटी हुई फ़सलों को मोड़ना ये सभी काम एंजिनों की सहायता से होने लगे। वहाँ वालों ने पहले पानी से काम लिया, फिर हवा से, फिर घोड़ों और कुत्तो से और तदनन्तर भाफ से । अब तो वे लोग बिजली देवी को भी अपने वश में किये हुए हैं और छोटे-बड़े हजारों काम उसी की सहायता से करते हैं। अमेरिका के कुछ बड़े-बड़े किसानों की जमीन के पास पानी के प्रवाही झरने हैं । ये कृषिकार अब इस फिक्र में हैं कि उन झरनों की जल-धार से बिजली की शक्ति उत्पन्न करके उसकी सहायता से कलें चला और उनसे खेती ही के नहीं, अपने घरेलू काम भी निकालें। उनके इस उद्योग में किसी-किसी को सफलता भी हुई है। वे लोग अब झरनों की बिजली से कृषि के उपयोगी यन्त्रों का संचालन करने भी लगे हैं। यह काम बड़े फ़ायदे का है। इसमें एक ही दफ़े कील-काँटों और मैशीनों में जो ख़र्च होता है वह होता है, पीछे से इस काम में बहुत ही कम खर्च करने की जरूरत रह जाती है । यह सब होने पर भी 1837 ईसवी तक अमेरिका में खेती के औजारों वगैरह में विशेष उन्नति न हुई थी। भारत में इस समय जैसे हल काम आते हैं; कुछ-कुछ उसी तरह के वहाँ भी काम आते थे । उनसे ठीक काम न होता देख इलिनाइस के जान डियर नामक एक लुहार ने लोहे का एक हल ईजाद किया। उस समय वहाँ के हल वजनी होते थे। उनसे वहाँ की कड़ी जमीन अच्छी तरह जुतती भी न थी-उनके फाल ज़मीन में गहरे न धंसते थे । डियर के लोहे के हल ने इन दोषों को दूर कर दिया । पहले तो लोगो ने उमकी इम ईजाद की दिल्लगी उड़ाई, पर जब उसके हल से पहले की अपेक्षा बहुत अधिक और बहुत अच्छा काम होने लगा, तब वे लोग आश्चर्यचकित होकर उसकी प्रशंमा करने लगे। कई साल तक इन हलो की बहुत कम बिक्री हुई। परन्तु ज्यों-ज्यों उनकी उपयोगिता लोगों के ध्यान में आती गयी, त्यों-त्यो उनका प्रचार बढ़ता गया। 1837 से 1839 ईसवी तक जान डियर के बनाये बहुत ही कम हल बिके। उसके बाद उनकी बिक्री बढ़ी और कोई 18 वर्ष के भीतर ही डियर के कारखाने में हर साल दस हजार तक हल बनकर बिकने लगे । अब तो डियर का कारखाना बहुत ही बड़े पैमाने मे काम कर रहा है। वह इलिनाइस रियासत के मोलिन नामक स्थान में है। उसमें एक हल तैयार होने में सिर्फ 30 सेकंड लगते हैं। हर फ़मल में यह कारखाना कम से कम दस लाख फाल तैयार करता है। उसमें कोई डेढ़ हजार आदमी काम करते हैं । हर साल इस कारखाने में 10 लाख मन लोहा, 5 लाख मन कोयला, 11 लाख मन तेल और वार्निश, 25 लाख फुट लकड़ी और 12 लाख गैलन जलाने का तेल खर्च होता जान डियर की ईजाद के बाद अमेरिका के एंजिनियर और कापतकार खेती के यन्त्र-निर्माण की ओर और भी अधिक दत्तचित्त हुए। तरह-तरह कलें ईजाद होने लगी। उनकी बदौलत खेती की पैदावार बराबर बढ़ती ही चली गयी । वहाँ लाखों बीघे जमीन गैर आबाद पड़ी हुई थी। परन्तु जानवरों की मदद से चलने वाले हलों की बदौलत उनका आबाद होना असम्भव-सा था। अतएव बहुत-कुछ माथा-पच्ची करने के