अमेरिका में कृषि-कार्य | 193 के लिये फावड़े के बजाय एक प्रकार की लकड़ी से काम लिया जाता था। ज्वार ओखली और मुसल से उसी तरह कूटी जाती थी जिस तरह हमारे यहाँ अव तक फूटी जाती है । कुल्हाड़ी से काटकर पेड़ गिराना लोगों को मालूम ही न था। वे उसके नीचे आग जलाकर उसे गिराते थे। खेती का मारा काम हाथ से होता था । अमेरिका नौआबाद देश है । भिन्न-भिन्न देशों की फालतू आबादी वहाँ जा बसी है। योरप के निवासी वहाँ जैसे जैसे जाते और बढ़ते गये वैसे ही वैसे उन्हें खेती में उन्नति करने की सूझती गयी। अपने जन्म-देश में जिस तरह खेती होती थी उसी तरह उन्होने वहाँ भी कृषि-कार्य करने का निश्चय किया। अमेरिका में भूमि की कमी तो थी ही महो। एक-एक कृषक को सौ-सौ दो-दो सौ बीघे भूमि आसानी से मिल जाती थी। इननी भूमि में पुराने ढंग से हाथों ही की बदौलत खेती करना सम्भव भी न था। अतएव उन्हें कलें-मैशीनें ईजाद करने की सूझी। पहले-पहल वहाँ वालों ने पनचक्की का आविष्कार किया। उससे एक दिन में सैकड़ों मन आटा पिसने लगा। देखकर लोग हैरत में आ गये। दूर दूर से लोग आटा पिसाने आने लगे । चक्की के मालिक को खूब मुनाफा होने लगा। कुछ ही दिनो में वह अमीर हो गया। उसे इस तरह कामयाब हुआ देख और लोगों ने भी उसका अनुकरण किया। धीरे-धीरे एंजिनो से और कुछ समय बाद, बिजली से ये चक्कियां चलने लगी। इसके बाद योरप से जाकर अमेरिका में बस जाने वालो ने हवा से काम लेने की युक्ति निकाली। उन्होंने पानी खींचने और ऊपर चढाने के लिये एक ऐसी कल निकाली जो हवा से चलती थी। इस कल से खेत सींचने में बहुत सुभीता हुआ । इस तरह की कलें अमेरिका में कही-कहीं अब भी देखने को मिलती हैं। अब तो वहाँ ऐसे-ऐसे पम्प ईजाद हो गये है जिनसे काम लेने के लिये एंजिन लगे हुए हैं और जिनसे सैकड़ों बीघे जमीन में बोई हुई फ़सलें बात की बात में सींच दी जाती हैं। इन्हीं एंजिनों की सहायता से चलायी गयी अन्य कलें भी अनेक काम करती हैं। उनसे कुट्टी काटी जाती है, लकड़ी चीरी जाती है, अनाज कूटा जाता है और आटा भी पीसा जाता है । बस, अकेले एक एंजिन से ये सब काम हो जाते हैं । यह तरक्की वर्तमान काल की है । 1800 ईसवी के लगभग कुछ लोग घोड़ों और कुत्तों से भी काम लेने लगे। गन्ने का रस निकालने तथा और भी कुछ काम करने के लिये उन्होंने ऐसी कलें निकाली जो घोड़ों और कुत्तों से चलायी जाती थीं। अमेरिका के दक्षिणी भाग में रहने वाले हबशी अब तक कहीं-कहीं ऐसी कलों से काम लेते देखे जाते हैं। 1807 ईसवी में संयुक्त देश (अमेरिका) के निवासियों ने भाफ की शक्ति का ज्ञान प्राप्त किया और उससे काम लेने की ठानी। राबर्ट फुल्टन नाम के एक आदमी एक ऐसी नाव ईजाद की जो भाफ की सहायता से चलने लगी। उसने एंजिन लगाया और न्यूयार्क नगर से अलबती तक उसी पर उसने हडसन नदी पार की। उसके इस कार्य ने अमेरिका वालों की आंखें खोल-सी दी। बस फिर क्या था, भाफ की शक्ति मालूम हो जाने पर लोग भाफ से चलने वाले एंजिनों के पीछे पड़ गये। जगह-जगह एजिन लग गये और नये-नये कल कारखाने बलने लगे। खेती के कामों के लिये भी ।
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९७
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