निष्क्रिय प्रतिरोध का परिणाम 2 राजा चाहे अपनी प्रजा को सुखी रक्खे, चाहे दुःखी। जिस प्रकार सन्तान की रक्षा का भार माता-पिता पर रहता है, उसी प्रकार प्रजा की रक्षा का भार राजा पर। दक्षिणी अफ़रीका में भारत की जो प्रजा बस गई है, वह वहाँ के शासकों के सर्वथा अधीन है । खेद की बात है, उनके सत्वों की बहुत कम रक्षा उन लोगों ने अब तक की है । गत आठ वर्षों से उन्हें अनेक प्रकार तकलीफें मिल रही थीं। अब कहीं, इतने समय बाद उन्हे दाद मिली है। इसका मुख्य श्रेय श्रीयुत गांधी को है । वहाँ वाले चाहते थे कि भारतवासी वहाँ न रहें। रहें भी तो उनके बराबर नागरिकता का अधिकार वे प्राप्त न कर सकें; केवल कुली बन कर रहें। पहले-पहल जब अंगरेज लोग अफरीका में आवाद हुए, जब वहाँ बहुत-सी जमीन बंजर पड़ी थी। वहाँ के प्राचीन निवासी, काफ़िर और अन्य जाति के हबशी, खेती करना न जानते थे। अतएव बसने वाले अंगरेजों ने सोचा कि यदि यहां मिहनती और कम मजदूरी पर काम करने वाले मजदूर कहीं से आ सकें तो बड़ा लाभ हो । अंगरेजो का अधिकार पहले-पहल केप कालनी पर हुआ, फिर नटाल पर । ट्रान्सवाल और आरेंज-फ्री-स्टेट में यूरप के कई देशों के बहुत से लोग बस गसे थे। उनमें डच और फ्रेंच मुख्य थे। उन लोगों को भी मजदूरों की ज़रूरत थी। केप कालनी में अँगरेज़ों का एक गवर्नर रहता था। सर जार्ज ग्रे जिस समय वहाँ के गवर्नर थे, उस समय केप कालोनी में रहने वाले अंगरेजों की प्रार्थना पर सर जार्ज ने इंगलैंड को लिखा कि भारत से कुछ मजदूर वहाँ भेज दिये जायें तो अच्छा हो । इंगलैंड ने भारत को यही बात लिखी। इस पर भारत के बड़े ताट ने हिन्दुस्तानी मजदूरों के सुभीत के लिए बहुत सी शर्ते की। उनको केप कालोनी वालो ने मंजूर कर लिया। इन्ही शर्तों के अनुसार अफ़रीका जाकर भारत के मजदूर मजदूरी करने लगे। पहले तीन, फिर पांच वर्ष में उनकी शर्ते पुरी हो जाती थी। तब वे स्वतन्त्र हो जाते थ। स्वतन्त्र होकर वे वहाँ बस जाने और वाणिज्य-व्यवसाय आदि करने लगते थे। उनको बमने के लिए वहाँ की मरकार उन्हे जमीन भी मुफ्त ही दिया करती थी। और भी अनेक सुभीते उन्हें थे। असल मे वहाँ की सरकार का अभिप्राय यह था कि इन मज़दूरो के वहां बम जाने से अफरीका आबाद भी हो जायगा और वहां के व्यवसायियों के लिए परिश्रमी और सीधे-मादे मजदूर भी मिलने लगेंगे। इसी से सैकड़ों लोग केप कालोनी मे बस गये। नटाल, ट्रान्सवाल और आरेंज-फ्री-स्टेट में भी वे पहुंचे और धीरे धीरे बस गये। मजदूरी छोड़ने पर वे लोग स्वतन्त्रतापूर्वक स्वयं भी व्यापार और खेती करने . लगे। 1860 ईस्वी में भारत से पहले-पहल मजदूर भेजे गये थे। इन मजदूरों ने
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