पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१६२

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158/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली आजकल आप दाजिलिंग ही में हैं और कुछ तिब्बती-ग्रन्थों का सम्पादन कर रहे हैं- जिसके शिक्षा-पथ पर चल नर पाते पद निर्वाण उसी शाक्यमुनि ने मेरा भी किया दुखों से त्राण । मैंने उसकी आशा से था किया आत्म-विश्वास । और उसी की दया-दृष्टि से पूर्ण हुआ अभिलाष ।। [ 2 ] कावागुची ने अपनी यात्रा-विषयक पुस्तक में तिब्बत की सामाजिक अवस्था का बहुत ही सच्चा चित्र खीचा है । आप उस देश में किसी गुप्त राजनैतिक विचार से नही गये थे। प्राचीन बौद्ध-शास्त्रों का अध्ययन करना और यथासम्भव उनमें से कुछ अपने साथ ले आना ही आपका उद्देश या । इसी से आपने वहाँ का भौगोलिक वर्णन बड़े विस्तार से नहीं किया। फिर भी प्रसंग-वश जो कुछ लिखा है, वह सभी उपयोगी है । कावागुची ने अपनी पुस्तक में जो कुछ लिखा है उसका सम्बन्ध कुछ काल पहले से है । वह आज का हाल नहीं। तिब्बत की दशा भी दिन पर दिन बदलती जा रही है । जो तिब्बती दार्जिलिंग या सिक्किम के आस-पास के स्थानों में आते या रहते है उन पर भारत सरकार विशेष कृपा-दृष्टि रखती है । सरकारी स्कूलों मे तिब्बती लड़कों को मुफ्त मे अंगरेजी की शिक्षा दी जाती है। होनहार लड़के सरकारी खर्च से अच्छे अच्छे विद्यालयो में भेज दिये जाते हैं ।। इधर चीन के राष्ट्र-विप्लव का भी बहुत कुछ असर तिब्बत पर पड़ा है। पर इसमे सन्देह नही कि जिन बातों का उल्लेख नीचे किया जाता है वे आज भी ज्यों की त्यों हैं; क्योंकि उस देश के जातीय जीवन में अभी तक कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। हाँ, लोगो की आँखें धीरे धीरे खुल रही है; वे आगे कदम बढ़ाने ज़रूर लग गये है। देश के उत्थान के लिए अभी बरसों की जरूरत है। तथापि काम में हाथ लग चुका है। धर्म आजकल प्रायः सारे तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार है । जापान की तरह इस देश के लोग भी 'महायान' पन्थ के अनुगामी है । इनके दो सम्प्रदाय हैं-प्राचीन और नवीन । प्राचीन सम्प्रदाय के लोगों की समझ में मांस खाने और भद्य पीने में कोई दोष नहीं। सांसारिक विषयों में लिप्त रहना ही निर्वाण-प्राप्ति का द्वार है । आनन्दमय जीवन व्यतीत करने से ही मनुष्य बुद्धदेव का प्रीति-पात्र बन सकता है । अधिकांश तिब्बती इमी सम्प्रदाय के हैं। ग्यारहवी सदी में पाल्दन नाम के किसी बौद्ध भिक्षुक ने नवीन सम्प्रदाय 1. पाठकों को स्मरण होगा, गत वर्ष कुछ तिब्बती लड़कों को भारत सरकार ने पढ़ने के लिए विलायत भेजा था । -लेखक