पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

12 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली देहान्त 29 जुलाई, 1912 को हो गया।" यहाँ 'पूर्व के नीचे झुके हुए सिर' से तात्पर्य एशिया के दीन-हीन-पराधीन देशों से है, जो जापान के विकास के कारण आत्म-गौरव महसूस कर रहे थे। द्विवेदीजी ने 'जापान की शिक्षा-प्रणाली', 'जापान के स्कूलों में जीवन- चरित शिक्षा' एवं 'जापान और भारत में शिक्षा का तारतम्य' निबन्ध लिखकर अपने देश के शिक्षाविदों के सामने उनके आदर्श रखे। वहीं 'चीन के विश्वविद्यालयों की परीक्षा-प्रणाली' निबन्ध लिखकर उनकी हीनता पर प्रकाश डाला। द्विवेदीजी ने अमेरिका पर 'सरस्वती' में अनेक लेख प्रकाशित किये। उन्होंने 'अमेरिका के गाँव' एवं 'अमेरिका में कृषि-कार्य' निबन्ध लिखकर अपने देश के कृषकों के सामने उसका आदर्श रूप निर्मित किया । वे अपने कृषक-बन्धुओं का आवाहन करते हैं कि पुरानी प्रणाली को छोड़कर किस तरह वैज्ञानिक रीति से खेती करें एवं अपने गाँवों को एक आदर्श ढाँचा दें। पर अमेरिका की एक युवती के नीलाम की खबर जब पढ़ते हैं, तब वहाँ की सभ्यता का भानो मजाक उड़ाते हुए अंत में कहते हैं- "ये सब सभ्यता के चोंचले हैं। देखते जाइए, यूरप और अमेरिका के सभ्य समाज में क्या-क्या गुल खिलते है।" ['एक तरुणी का नीलाम' शीर्षक निबन्ध से उद्धृत।] यूरोप और अमेरिका की सभ्यता के इन्हीं चोंचलों को उजागर करने के क्रम में उन्होने काफी कुछ लिखा है, जिनमें से एक निबन्ध है-'विलायत में उपाधियों का क्रय- विक्रय' । यह प्रकरण उसी विलायत में हो रहा था, जहाँ के अंगरेजों के पराक्रम पर द्विवेदी जी ने एक महत्त्वपूर्ण निबन्ध लिखा था और बताया था कि किस तरह अँगरेज़ी प्रजा ने अपने पराक्रम के बल पर विलायत यानी इंगलैंड में पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को ममाप्त कर, नई प्रजातांत्रिक व्यवस्था की नींव रखी। उसी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में इंगलैंड की दोनों राजनीतिक पार्टियाँ पैसे लेकर किस तरह लोगों को उपाधियों से विभुषित करती हैं। द्विवेदीजी ने कुछ देशों पर अलग से लिखा है जिसमें नेपाल, तिब्बत और वलगारिया प्रमुख हैं । इन देशों के भौगोलिक परिदृश्य को रखते हुए उनके पूरे इतिहास से परिचित करवा कर उनकी वर्तमान स्थिति की यथार्थ छवि वे प्रस्तुत करते है । तिब्बत पर जापानी कावागुची की यात्रा का वृत्तान्त संक्षेप में प्रस्तुत कर वे वहाँ के जीवन का समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। द्विवेदीजी का एक महत्त्वपूर्ण निबन्ध है-'लीग ऑफ नेशन्स का ख़र्च और भारत' । इस निबन्ध के प्रारम्भ में वे कहते हैं-"सन् 1857 के ग़दर की याद कीजिए। उसमें बड़ी-बड़ी नृशंसताएँ हुई थीं। कितने ही क़त्ले-आम भी शायद हुए थे। पर उन सबका सविस्तर और सच्चा वर्णन कहीं नहीं मिलता। लोगों का कहना है कि उनमें कुछ नृशंस बातें बढ़ाकर लिखी गयी हैं और कुछ पर धूल डाली गयी है । कलकत्ते के ब्लैक होल और कानपुर के क़त्ल की कथा तो खूब विस्तार के साथ और शायद बढ़ाकर भी लिखी गयी है । पर गोरों ने कालों पर जो अत्याचार किये हैं उन पर कम प्रकाश डाला गया है और कुछ घटनाओं पर तो बिल्कुल डाला ही नहीं गया।" अँगरेजों के द्वारा दिये गये विवरण के आधार पर कानपुर में नाना साहब के द्वारा किये गये अंगरेजों