पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१४९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

युद्ध-सम्बन्धी अन्तर्जातीय नियम / 145 कोयला भी वर्जित वस्तु है, परन्तु उसका वर्जित होना इस बात के फैसले पर अवलम्बित है कि उसका व्यवहार किस काम में होगा। यदि उसका व्यवहार किसी औद्योगिक काम के लिए नहीं, किन्तु किसी युद्ध-कार्य में होने वाला हो; तो उसकी गणना भी, रणनीति के अनुसार, वर्जित वस्तुओं में होगी। गत रूस-जापान युद्ध में रूस और जापान दोनो ने कोयले की गणना वर्जित ही वस्तुओं में की थी। उसी युद्ध में रूस ने कच्ची कपास को भी 'वजित' बतलाया था । जब राष्ट्रों में इस विषय पर बड़ी हलचल मची तब रूस ने अपनी दूसरी घोषणा में यह कहा कि कच्ची कपास ज्वालाग्राही पदार्थों के बनाने में काम आती है । इसीलिये वह 'वजित' समझी जाती है। परन्तु सूत आदि शुद्ध कपास की चीजे जिनसे कपड़ा बुना जाता है 'वर्जित' नहीं। शत्रु-राज्य में फैले हुए तार तोड़े और उसके खम्भे नष्ट-भ्रष्ट किये जा सकते हैं, परन्तु जिस तार द्वारा शत्रु का और किसी तटस्थ राज्य से सम्बन्ध हो उसका वही भाग तोड़ा जा सकता है जो शत्रु की भूमि पर हो। दो तटस्थ राज्यों के बीच में लगे हुए सामुद्रिक तार पर लड़ने वाले दल हस्तक्षेप नहीं कर सकते, परन्तु बहुधा ऐसा होता है कि लड़ने वाला वह राष्ट्र जो ऐसे तार के विशेष निकट हो उस पर इतना अधिकार प्राप्त कर लेता है कि जब चाहे तब उससे भी भेजी जाने वाली खबरो की जॉच-पड़ताल कर सके । शत्रु के काग़ज़-पत्रों की गणना वर्जित वस्तुओ में है। जहाँ ऐसे काग़ज़-पत्र मिलते है, तुरन्त जब्त कर लिये जाते हैं । [नवम्बर, 1912 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'प्रबन्ध-पुष्पांजलि' में संकलित ।]