पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१४६

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142/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली उसे उसके साथियों के पास पहुंचा दिया। जापानी सैनिक अपने रूसी कैदियों के आराम का बहुत ही ख़याल रखते थे। बहुधा वे लोग रूसी कैदियों को अपनी सिगरेट और शराब देकर प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते थे। युद्ध के कैदी, युद्ध जारी रहते हुए, धन लेकर भी छोड़ दिये जा सकते हैं । दोनों पक्ष वाले अपने अपने कैदियों को बदल भी लेते हैं। वर्तमाम युद्ध में शरीक न होने की शर्त पर कैदी छोड़ दिये जाते है। यदि कोई कैदी भागे तो वह भागने की अवस्था में मार डाला तक जा सकता है; परन्तु फिर पकड़े जाने पर उसे केवल इतना ही दण्ड दिया जा सकता है कि उस पर विशेष चौकसी रक्खी जाय । यदि वह अन्य कैदियों के भागने के षड्यन्त्र में सम्मिलित हो तो फिर वह प्राण-दण्ड ही का पात्र समझा जाता है। कैदियों को यथा-सम्भव अच्छा भोजन, वस्त्र और स्थान दिया जाता है; किसी किसी अवस्था में उनके जेब-खर्च का भी प्रबन्ध किया जाता है । युद्ध में पकड़े तो सभी जा सकते हैं, परन्तु समाचार-पत्रों के संवाद-दाताओं के लिए यह नियम ढीला कर दिया जाता है। वे लोग केवल उस समय तक रोके जा सकते हैं जब तक उनके न रोकने से किसी प्रकार की हानि पहुँचने की सम्भावना हो । गत रूस-जापान युद्ध में एक ऐसी ही घटना हो गई थी। अमेरिका के किसी समाचार-पत्र के संवाद-दाता के जहाज को रूसियों ने पकड़ लिया। कुछ काल तक उक्त संवाद-दाता को रूसियों की हिदायत में रहना पड़ा। अन्त में वह छोड़ दिया गया । युद्ध में किसी को धोखे से मारना मना है, परन्तु एक दल के सैनिकों का दूसरे दल वालों पर छिप कर छापा मारना मना नहीं। शत्रु के खाने पीने की चीजों में विष मिला देना, विष से बुझे शस्त्रों का प्रयोग करना और तोपों में नाल, शीशे और विविध धातुओं के टुकड़े तथा इसी प्रकार की अन्य चीजें भरना आदि बातें भी नियम विरुद्ध समझी जाती हैं । ज्वालाग्राही पदार्थों से भरे हुए गोले बड़े ही भयंकर होते हैं । जहाँ एक भी ऐसा गोला गिरता है, वहाँ सफ़ाया ही हो जाता है । गोले जितने छोटे होगे, उतने ही अधिक एक बार में चलाये जा सकेंगे और जितने ही अधिक गोले होंगे जहाँ तहाँ गिर कर, उतना ही अधिक भयंकर संहार वे करेंगे । इसीलिए आध सेर से कम वजन के ज्वालाग्राही पदार्थ युक्त छोटे गोले युद्ध में नहीं चलाये जाते । 1874 में ब्रसेल्स में, एक सैनिक सभा हुई थी। उसमें तं पाया था कि योद्धाओं को यह अधिकार नहीं है कि वे जिस तरह बाहें अपने शत्रुओं को मार डालें । इसलिए भविष्यत् में युद्ध के समय, अब ऐसे गोले न व्यवहार में लाये जायं जिनका काम फूटकर हवा को विषेला बनाना ही हो। सभा की इस बात को सब राष्ट्रो ने स्वीकार कर लिया। समुद्र में बारूद की सुरंगें लगाकर शत्रु के जहाज नष्ट कर दिये जाते है । समुद्र में तट से तीन मील तक इस प्रकार की सुरंगें लगाने का हर राष्ट्र को अधिकार है। परन्तु ये सुरंगें होती बड़ी भयंकर हैं । यदि किसी प्रकार ढीली पड़ जायें तो बहती बहती कहीं की कहीं पहुंच जार्य और केवल सैनिक जहाजों ही को नहीं, किन्तु इससे टकरा जाने वाले व्यापारी जहाजों तक को नष्ट कर दें। इन सुरंगों की निरंकुशता पर