पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१३६

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132 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली आदमी पास होते हैं। उत्तीर्ण छात्रों के दो विभाग किये जाते हैं । दूसरी श्रेणी वाले यदि सरकारी नौकरी करना चाहें, तो जिले के शासनकर्ता (Magistrate) बनाये जाते हैं । यदि वे दुर्भाग्य से किसी दूरवर्ती या उजाड़ प्रान्त में नियत किये गये तो रिश्वत के बल से अच्छे प्रान्त की बदली करा सकते हैं । प्रथम श्रेणी के मनुष्य Hanlin' पदवी के लिए परीक्षा देते है। इस पदवी के लिए लिपि-सौन्दर्य और अत्युत्कृष्ट लेख-प्रणाली की बड़ी आवश्यकता है। इस परीक्षा में जो प्रथम होता है, उसको 'Chuang Yuan' की अत्यन्त सम्मानास्पद उपाधि मिलती है। वह अपने प्रान्त में एक महान् पुरुष समझा जाने लगता है। अधिकांश 'Hanlin' पदवी-धारी लोग चीनी गवर्नमेंट के शाही दफ्तरों में काम करने लगते हैं । फिर वे या तो शिक्षा विभाग के सर्वोच्च अधिकारी या 'Chuken' परीक्षा के परीक्षक बनाये जाते हैं । इसके बाद उन्हें कोई ऊँचे दर्जे की सरकारी जगह मिल जाती इस तरह चीन मे हजारों वर्षों से परीक्षायें होती चली आ रही हैं। राज-कर्म- चारियों के चुनाव की प्रणाली भी पूर्ववत् ही बनी है। जब तक विदेशियो के क़दम- शरीफ़ चीन में नहीं पहुंचे थे, तब तक सब काम सन्तोषजनक रीति से होता रहा। पर जब से राज्य-लोलुप पश्चिमी जातियों ने चीन को दबाना शुरू किया है, तब से कुछ दूरदर्शी चीनी विद्वानों की आंखे खुल गई है। वे समझने लगे है कि जमाने के साथ-साथ चले विना इस संसार में अपना नाम बनाये रखना बहुत मुशकिल है । शिक्षा और परीक्षा की लगी हुई पद्धति को छोड़ कर जब तक हम लोग पश्चिमी रीति-नीति से लौकिक शिक्षा का प्रचार न करेंगे, तब तक उन्नति करना तो दूर रहा, उलट विदेशियों की ठोकरे खाते- खाते एक दिन चीनी जाति विम्मियों के पराधीनता-पाश में अवश्य बँध जायगी। यद्यपि चीन के इन दूरदर्शी सुपुत्रों की चेष्टा अभी तक पूर्ण रूप से सफल नही हुई, तथापि उसके शुभ परिणाम के चिह्न प्रकट होने लगे है । आशा है कि वह एक न एक दिन अवश्य सफल होगी। [सितम्बर, 1908 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'संकलन' पुस्तक में संकलित।]