पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१३२

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एक तरुणी का नीलाम मुश्तरी नाम की एक वेश्या ने, जो कविता भी करती थी, एक बार अपने दिल के विषय में एक पद्य कहा था । जहाँ तक हमें याद है, वह पद्य यह था- खरीदारो लो चल के बाजार देखो। दिले मुश्तरी अब बिका चाहता है ।। इम वार-बनिता ने तो अपना दिल ही बेचना चाहा था; पर अमेरिका की खूब पढ़ी लिखी एक नौजवान कुमारिका ने अपने मारे शरीर को, मन और प्राण सहित, नीलाम कर देने का इश्तहार दिया है । वह युवती वाशिंगटन की रहने वाली है। शिकागो में वह टाइप-राइटिग का काम करती है। मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ 'बोली' बोलने वाले की दामी होने का विचार उसने किया है। वह अपने को नीलाम करना चाहती है। इसका कारण आप उमी के मुख से सुनिए- "इम नीलामी नोटिस को पढ़ कर लोगो को आश्चर्य होगा। परन्तु आश्चर्य करने का कोई कारण नही। क्योकि और तरुणी लडकियाँ भी तो अपने को बेचकर लोगो की गुलामी करती है । हाँ, उनकी गुलामी कुछ कुछ दूसरी तरह की ज़रूर है। पर है वह भी पूरी पूरी गुलामी । गुलामी के सिवा और कुछ नहीं। कोई कोई प्रति सप्ताह तनख्वाह पाने के परिवर्तन मे, अपने को बेच डालती है, कोई कोई पति-प्राप्ति के परिवर्तन में । पति को मालिक बनाकर उसके अधीन रहना क्या गुलामी नही ? औरो की नौकरी करना क्या गुलामी नहीं ? ये बाते सर्व-साधारण के सामने प्रकाश रूप से नही होती। हर एक नौजवान लड़की चुपचाप गुलामी स्वीकार कर लेती है। यह बात मै प्रकाश रूप से करना चाहती हूँ। मै सब लोगो को सूचना देकर अपने को नीलाम करने जाती हूँ। इस तरह नीलाम करने से मुझे आशा है कि मेरी क़ीमत लोग कुछ अधिक लगावेंगे । अतएव खुल्लम खुल्ला नीलाम करने मे हानि ही क्या है ? मेरा परलोकवासी पिता मरकारी नौकर था। मुझे लिखाने-पढ़ाने और शिक्षा देने में उसने 30,000 रूपये खर्च किये । इतनी लागत से मैं जवान होकर नीलाम होने लायक़ हुई हूँ। पर यद्यपि मै जी-जान होम कर पाइप-राइटिग' का काम करती हूँ, तथापि 30 रुपये हफ्ते से अधिक मुझे तनख्वाह नही मिलती। मेरी तैयारी में जो मूल धन लगाया गया है, उम पर यह 5 फ़ी सदी के हिसाब से भी तो नहीं पड़ता। अब मै यह जानने के लिए उत्कण्ठित हो रही हूँ कि गुलामों के मालिक अमेरिका निवासी धनवान् लोग ज़ियादह से जियादह कितनी क़ीमत देकर गुलाम बनाने के लिए अमेरिका ही की एक तरुण कुमारी को ख़रीद कर सकते हैं। मैं जानना चाहती हूँ कि इस तरह म.द्वि.र.-4