पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१२८

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अँगरेजी प्रजा का पराक्रम राजा बड़ा प्रजा अल्प, राजा श्रेष्ठ प्रजा कनिष्ठ, राजा बाप प्रजा बालक-इस तरह की कल्पनायें प्राचीन समय से लेकर आज तक कितने ही देशों में प्रचलित है । जो कुछ राजा करे उसे प्रजा को चुपचाप मानना चाहिए। ज़रा भी ची-चपड़ करना मुनामिब नहीं । पुराने समय से प्रजा का यही धर्म माना गया है । परन्तु ज्ञान-मार्ग में मनुष्यों का तजरिबा जैसे जैसे बढ़ता गया वैसे ही वसे उनकी समझ में यह बात आती गई कि गजा हुआ तो क्या हुआ; वह भी और आदमियों की तरह एक आदमी है । यह स्वाभाविक बात है कि वह औरों के सुख की अपेक्षा अपने सुख का अधिक खयाल रक्वे अपने को अधिक आराम पहुँचाने-अपने को अधिक सुखी करने-की झोंक में राजा के हाथ से अन्याय हो सकता है, अनुचित और असन्तोषजनक काम हो सकता है और प्रजा को कष्ट पहुंच मकता है । यह ठीक नहीं। इसका निवारण होना चाहिए। यह कल्पना पहले पहल योग्प के देशों में उत्पन्न हुई; फिर वह एशिया में पहुंची। जब वह धीरे- धीरे इंगलैंड पहुंची तव वहां के निवामी राजा की सत्ता को नियमित करने की फ़िक्र में लगे। बुद्धिमान मनुष्यों ने प्रयत्न आरम्भ किये । वे प्रयत्न अनन्त हैं। उनके फल भी अनन्त हैं । उनका साद्यन्त वर्णन बहुत ही मनोरंजक और उपदेशपूर्ण है। इस तरह के प्रयत्न करके प्रजा ने गजा से जो कुछ पाया है उसे हम पराक्रम कहते हैं । उमकी योग्यता लड़ाई के मैदान में दिखलाये गये पराक्रम से कम नहीं है। उसमें से दो-एक बाते हम यहाँ पर लिखते हैं। अंगरेजी प्रजा के पहले पराक्रम का नाम है मैगनाकार्टा । यह एक सनद है । इसे 1215 ईसवी में इंगलैंडवालों ने जॉन नामक अपने गजा से प्राप्त किया था। जॉन बड़ा दुराचारी और अन्यायी था। वह प्रजा को बहुत तंग करने लगा। अमीर, उमग, मेट-माहूकार-मवसे वह जबरदस्ती रूपया वमूल करने लगा। एक यहूदी महाजन बड़ा धनाढ्य था। उसने गजा के इच्छानुसार रूपया न दिया । इस कारण गजा ने उमे कैद कर लिया और प्रतिदिन उमका एक-एक दाँत उग्त्र इवाने लगा। 9 दिन तक उमका एक- एक दाँत उवाड़ा गया। जब, वह इस तरह दी गई वेदना मे बहुत ही व्याकुल हुआ नब, गजा जितना रुपया मांगता था उतना देकर, किमी तरह उमने अपनी जान बचाई। इम तरह के जो अनेक जल्म-अनेक भयंकर अन्याय हो रहे थे वे प्रजा को अमह्य हो गये । अन्त में प्रजा बिगड खड़ी हुई । उसने टेम्स नदी के किनारे, रनीमीड के मैदान में, गजा को पकड़ा और ! 5 जून को उममे मंग्नाकार्टा नाम की एक दस्तावेज़ लिग्न ली। यह एक प्रकार का इकरारनामा है। उस समय जो विशेष ममझदार और चतुर लोग वहाँ थे उन्हीं का वह लिखा हुआ है। दस्तख़त उस पर राजा ने किये हैं। इस इकरारनामे में राजा और प्रजा दोनों के हकों का यथोचित नियमन किया गया है । इसमें