पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/९०

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महाभारतमीमांसा

६४ . * महाभारतमीमांसा * समयके अनन्तर. महाभारत हुआ, तो स्थूल अनुमानसे विशेष लाभ क्या हुमा? इससे महाभारतके समयका ठीक ठीक ऐसे भी उदाहरण दिये गये हैं जिनसे निर्णय करने में क्या लाभ हो सकता है ? मालूम होता है कि कठोपनिषद्के अव- यदि कुछ लाभ हो तो वह उन ग्रन्थोंके तरण महाभारतमें पाये जाते हैं परन्तु कालके सम्बन्धमें ही हो सकता है, जिनका इससे भी कोई विशेष लाभदायक अनु- उल्लेख महाभारतमें किया गया है । जैसे, मान नहीं किया जा सकता । श्वेताश्वतर भारण्यक शब्द महाभारतमें पाया जाता उपनिषद् और मैत्रायण उपनिषदके है; और पाणिनिके समय श्रारण्यक शब्द जो अवतरण महाभारतमें लिये गये हैं, का अर्थ 'वेदका विशिष्ट भाग' नहीं था, उनके भी उदाहरण हाप्किन्सने दिये हैं। किन्तु 'अरण्यमें रहनेवाला मनुष्यः था: स्मरण रहे कि ये दोनों उपनिषद् दशोप- इससे यही मालूम होता है कि वेदके निषदोंके बाहरके हैं और इनका समय भारण्यक भाग पाणिनिके बाद और भी कुछ मालूम नहीं । ऐसी दशामें यदि महाभारतके पहले बने होंगे या उन्हें यह कहा जाय कि उपनिषदोंके अनन्तर महा- नाम दिया गया होगा । अस्तु : यदि कहा भारतकी रचना हुई, तो इस कथनसे कुछ जाय कि महाभारतमें वेदके अमुक भागका भी निष्पन्न नहीं होता । मैत्रायण उप- अथवा उपनिषदोंका उल्लेख नहीं है, इस- निषद्स महाभारतमें कुछ वेदान्त तत्त्व लिये वे भाग उस समय थे ही नहीं, तो लिये गये हैं जिनका विचार वेदान्त यह अनुमान भी नहीं किया जा सकता। विषयके साथ स्वतन्त्र रीतिसे आगे चल- जबतक इस बातकी आवश्यकता न हो कर किया जायगा। तात्पर्य यह है कि कि उल्लेख किया ही जाना चाहिये, तब हमें यहाँ यह बतलानेकी आवश्यकता तक उल्लेखके अभावसे कुछ भी अनुमान नहीं कि वैदिक ग्रन्थोंके कौन से अवतरण नहीं किया जा सकता । ऐसी दशामें महाभारतमें लिये गये हैं। गृह्यसूत्रों, निश्चयात्मक रीतिसे यह नहीं बतलाया धर्मशास्त्रों और पुराणोंका आवश्यक जा सकता कि महाभारतके पहले कौन उल्लेख पहले किया जा चुका है। अब कौन से ग्रन्थ थे। । दर्शन, अनुशासन, पन्थ अथवा मतके ____ इस रष्टिसे देखने पर यहाँ इस बात- उल्लेखके सम्बन्धमें कुछ विचार किया का विचार करनेकी कोई आवश्यकता : जाना चाहिये। नहीं कि यदि वेदों अथवा उपनिषदोंके, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्व कुछ अवतरण महाभारतमें पाये जाते हों । और उत्तर मीमांसा मिलाकर जो छः तो वे कौन से हैं। कारण यह है कि इस : दर्शन होते है, उनका एकत्र उल्लेख महा- बातके मालूम हो जाने पर भी कोई अनु- भारतमें कहीं नहीं है। अकेले कपिलको मान नहीं किया जा सकता । वेदोंके जो छोड़ इन दर्शनोंके प्रसिद्ध कानोका वचन महाभारतमें ज्योंके त्यों पाये जाये भी उल्लेख महाभारतमें नहीं है। न्यायके है, उन्हें दंदकर हाप्किन्सने अपने ग्रन्थम सूत्रकर्ता गौतम, वैशेषिकके कणाद, योग- ऐसे उदाहरणोंकी एक माला ही दे दी के पतञ्जलि और उत्सर मीमांसाके बाद- है। इन उदाहरणोसे यह स्थूल अनुमान ; रायणका भी नाम महाभारतमें नहीं है। हो सकता है कि वेद, ब्राह्मण आदि सब हम पहले कह चुके हैं कि बादरायणके अन्य महाभारतके पहलेके हैं : परन्तु इस · सूत्र महाभारतके अनन्तरके हैं। उसका