पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/८९

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  • महाभारत प्रस्थका काल 8

उनके नामका उल्लेख स्पष्ट है-छन्द, व्याक- है, परन्तु गर्गका नाम सारखत उपा- रण, ज्योतिष, निरुक्त, शिक्षा और कल्प। ख्यानमें पाया जाता है। शान्ति पर्वके परम्त यास्कको छोडकर इन वेदांगोंमें ३४०वें अध्यायके 8वें श्लोकमें भर्गका से किसीके भी कर्ताका कछ उल्लेख नहीं सम्बन्ध कालयवनके साथ लगाया गया है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि जो है। यह गर्ग कालज्ञानी था और ज्योतिषों वेदाज वर्तमान समयमें पढ़े जाते हैं, अर्थात् ग्रहोंकी वक्र-गतिको जानता वही महाभारत-कालमें भी प्रसिद्ध थे और था। जेकोबीने यह सिद्ध कर दिया है पढ़े जाते थे या नहीं। इससे जान पड़ता कि महाभारतके समयकी प्रहमाला प्रामे है कि यह उल्लेखाभाव होगा। परन्तु | सन् ३०० ईसवी में शात प्रहमालासे भित्र इसमें सन्देह नहीं कि वर्तमान वेदाङ्गोके थी (अर्थात् यह माना गया है कि सूर्य कर्ता और उनके ग्रन्थ महाभारतके पूर्व | नीचे था और चन्द्र ऊपर था)। महा- कालके हैं । इन अंगोंके उपांग भी थे, भारतके समय कल्पसूत्र कौन कौन से थे क्योंकि वन पर्वके ६४ वें अध्यायमें लिखा है। इस बातका पता नहीं। सिर्फ कल्पवेदार 'वेदाः सांगोपांगा सविधारः।' इस बात का उल्लेख है। परन्तु यह बात निर्विवाद का पता नहीं लगता कि ये उपाङ्ग कौन से सिद्ध है कि महाभारतके पूर्व कालमें वेद- थे और न टीकाकारने इसका कुछ हाल भेद सहित और शाखा-भेद सहित श्रोत- लिखा है। शान्ति पर्वके ३३५ वें अध्यायके सूत्र भिन्न भिन्न होंगे। . . २५ वें श्लोकमें यह उल्लेख है कि "वेदेषु महाभारतमें यद्यपि चार वेदों, सपुराणेषु सांगोपांगेषु गोयसे ।" अङ्गो-ब्राह्मणों, याज्ञवल्क्य शतपथ ब्राह्मण, मेसे ज्योतिष और निरुक्तका उल्लेख आरण्यक, उपनिषदों, छः वेदाङ्गों और अधिक पाया जाता है। यास्कके निरुक्त तीन उपवेदोका उल्लेख किया गया है, और निघन्टुका महत्त्व शान्ति पर्वके ३४३ तथापि इससे महाभारतके कालका वें अध्यायके ७३ वें श्लोकमें वर्णित है निर्णय करनेके सम्बन्धमें कुछ भी अनु- और यहीं कोशका भी उल्लेख है। मान नहीं किया जा सकता । कारण यह ज्योतिषका उल्लेख उपनिषदोंमें भी है कि पहले तो इन ग्रन्थोंके कर्ताओके नक्षत्र-विद्याके नामसे किया गया है। नाम नहीं दिये गये हैं; और फिर इन यह बात समझ नहीं पाती कि नक्षत्र- ग्रन्थों तथा इनके कर्ताओका समय भी जीवी और आयुर्वेद वी मनुष्य श्राद्धके निश्चित नहीं है, यहाँतक कि वह समय निमन्त्रणके लिये अयोग्य क्यों माने मालूम ही नहीं है। प्रायः इन ग्रन्थोंका गये थे । नक्षत्र-विद्या और ज्योतिषमें समय बहुत प्राचीन होगा, इसलिये यदि कुछ भेद होगा। फल-ज्योतिषकी कुछ | वह मालुम भी हो तो उसका कुछ विशेष निन्दा की हुई जान पड़ती है। वन पर्वके | उपयोग नहीं किया जा सकता। उदा. २०६ अध्यायमें कहा है कि-"दो हरणार्थ, यदि यह मालूम हो गया कि व्यक्तियोंका जन्म एक ही नक्षत्र पर होता महाभारत वेदान्त-ज्योतिषके अनन्तर है, पर वे दोनों एक हीसे भाग्यवान् नहीं बना, तो इस जानकारीसे कुछ भी लाम होते, किन्तु उनके भाग्यमै बहुत अन्तर नहीं है, क्योंकि इस ज्योतिषका समय हुना करता है ।" किसी ज्योतिष-प्रन्थ ईसवी सन्के पहिले १४०० या १२०० अथवा अन्धकतका उल्लेख कहीं नहीं माना जाता है। यदि कहा जाय कि इस