- महाभारनमीमांसा * - - इससे प्रकट होता है नक्षत्रोंका प्रारम्भ या दो वर्षोंका ही नहीं किन्तु बहुत वर्षाका श्रवणसे है, अर्थात् जब श्रवण नक्षत्र पर होना चाहिये । इसके सिवा यह बात भी उदगयन हो सब नक्षत्रोंका प्रारम्भ भरणी-ध्यान देने योग्य है कि अश्विनी-नक्षत्र १३ से मानने में कोई हर्ज नहीं है। कारण यह अंशोंका है, क्योंकि ३६० अंशोंके एक पूरे है. कि वेदांग-ज्योतिष में धनिष्ठा नक्षत्र पर चक्रको २७ नक्षत्रों में विभाजित करनेपर उदयन बतलाया गया है। इसका अर्थ एक नक्षत्र १३ अंशका होता है। इसी यही होता है कि कृत्तिकाके पहले सातवे कल्पनाके अनुसार नक्षत्रोंके पाद-विभाग नक्षत्र पर उदगयन है। जब वह एक भी किये गये हैं। एक मेष राशि सवा दो नक्षत्रके पहले भा जाय तब एक नक्षत्रोंकी होती है । २७ नक्षत्रोको १२ नजान-प्रारम्भ कृत्तिकाके पीछे हट जाता राशियोंमें विभाजित करने पर एक राशि है; अर्थात् उस समय भरणीसे नक्षत्र- सवा दो नक्षत्रोंके बराबर होती है। इसी प्रारम्भ माना जाने लगा। इसके बाद लिये नक्षत्रोंके पाद यानी एक चतुर्थांश- अश्विनीसे नक्षत्रका प्रारम्भ हुआ और विभाग किये गये हैं। नक्षत्र-चक्र अथवा वही पद्धति अबतक चली आती है। राशिचक्रका प्रारम्भ किसी एक बिन्दुसे अर्थात्, नक्षत्रोंके सम्बन्धमें अश्विनी, कल्पित किया जाता है। इस विषयमें भी भरणी इत्यादि कम ही हम लोगोंमें प्रच- बहुत मत-भेद है कि आर्य-ज्योतिषमें यह लित है। महाभारतमें इस क्रमका कोई प्रारम्भ किस स्थानसे माना गया है। प्रमाण नहीं पाया जाता। इससे प्रकट सारांश, यद्यपि मेषारम्भ ठीक अश्विनी होता है कि महाभारत इसके पहलेका नक्षत्र में न होकर उसके पीछे कुछ अंशों है। यह क्रम उस समयका है जब कि पर हुआ हो, तो भी अश्विनीसे ही नक्षत्र- तिषशाखकोनया स्वरूप प्राप्त हश्रा और गणनाका श्रारम्भ माना जा सकता है। राशि, अंश आदिके अनुसार गणित किया। इस प्रकार यह मानने में कोई हर्ज नहीं जाने लगा। यही क्रम सिद्धान्त-ग्रन्थोंसे कि जिस समय इस देशमें राश्यंशादि लेकर आधुनिक सब ज्योतिष-ग्रन्थों में भी ज्योतिष-पद्धति जागे हुई, उस समय पाया जाता है। सागंश, जब मेषादि मेषादि-राशिका आरम्भ अश्विनी नक्षत्रके राशिका प्रारम्भ अश्विनी-नक्षत्रमें था तब कुछ अंश पीछे हुआ था । यदि यह नियम यह पद्धति जारी हुई है। माना जाय कि सम्पान-बिन्दुको एक अंश ___ हम पहले कह आये हैं कि मेषादि पोछे हटनेके लिये ७२ वर्ष लग जाते हैं, राशियों और अश्विनि आदि नक्षत्रोंकी तो ३०० वर्षमें लगभग ४ अंश होंगे। गणनाके प्रारम्भका हिसाब करते समय अर्थात्, यह भली भाँति माना जा सकता वीक्षितने मेष राशि और अश्विनीके प्रत्यक्ष है कि जब मेषारम्भ अश्विनी-नक्षत्रके ताराका मेल करके गणित किया है। परन्तु । पीछे ४ अंश पर था, उस समय मेषादि वह माननेकी कोई आवश्यकता नहीं कि गणना हमारे आर्य लागोंमें जारी हुई। इस गणनाका प्रारम्भ उसी समयसे हुश्रा ऊपर दिये हुए ऐतिहासिक प्रमाणसे है, जब कि मेषका प्रारम्भ ठीक अश्विनी- यदि यह मान लिया जाय कि ईसवी सन् नमानसे ही था। सम्भव है कि नूतन के लगभग २०० वर्ष पहले राश्यंशादि गणित-पद्धतिके जारी होने में बहुत सा पद्धतिका स्वीकार हमारे यहाँ किवा समय लग गया हो। यह समय कुछ एक : गया, तो भी मेषादि राशिका अश्विनी
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महाभारतमीमांसा