पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६९

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  • महाभारत ग्रन्थका काल

दूसरा प्रकरण। प्रत्यक्ष जोड़ दो चार हज़ारसे कम हो, । तथापि लोगोकी यह समझ महाभारतके समयसे ही चली आती है कि महाभारत एक लाख श्लोकोंका ग्रन्थ है। ऐसी दशा- महाभारत ग्रन्थका काल। में महाभारत ग्रन्थ एक लक्षात्मक कप महाभारतके काल-सम्बन्धी विषयमें दो मी हुश्रा, यह निश्चित करनेके लिये देखना प्रश्न अन्तर्भाव हैं । पहला प्रश्न यह | चाहिये कि बाह्य प्रमाणोंमें एक लक्षात्मक कि, जिस रूपमें अभी हम महाभारतको ग्रन्थका उल्लेख कहाँ कहाँ मिलता है। देखते हैं वह रूप उसे कब प्राप्त हुआ ? इस तरहका उल्लेख दो स्थानोंमें पाया जाता है। गुप्तकालीन एक लेखमें "शत और दूसरा प्रश्न, मूल महाभारत कबका | साहम्यां संहितायां" कहा है। इस लेखका है ? सौतिने महाभारतमें अनुक्रमणिकाको जोड़कर प्रत्येक पर्वकी अध्याय-संख्या काल* ईसवी सन ४४५ है। इससे प्रकट और श्लोक-संख्या दी है। इस अनुक्रम- होता है कि महाभारतको उसका वर्तमान णिकाके अनुसार जाँच करने पर मालूम रूप ईसवी सन् ४०० के पहिले प्राप्त हुआ होता है (और यह हम पहले देख भी चुके था। इससे कुछ लोग समझते हैं कि है) कि, प्रचलित महाभारतमें सौतिके महाभारतको वर्तमान स्वरूप गुप्तोंके समयसे कुछ भी नई भरती नहीं हुई है। जमानेमे प्राप्त हुआ है । परन्तु यह भूल इसलिये हम निश्चयपूर्वक मान सकते हैं है, क्योंकि एक लक्षात्मक ग्रन्थका उल्लेख कि प्रचलित महाभारत और सौतिका इसके भी पहले पाया जाता है और वह महाभारत एकही है। इस ग्रन्थका काल- यूनानियोक लखम ह। यह ग्रीक लेखक निर्णय अन्तस्थ तथा बाह्य प्रमाणोंके या वक्ता डायोन क्रायसोस्टोम है। यह आधारपर निश्चयात्मक रीतिसे किया जा इसवी सनकी पहिली शताब्दीमें दक्षिण सकता है। पहले तो महाभारत व्यासजी- | हिन्दुस्थानकेपारड्य, केरल इत्यादि भागों में का बनाया हुआ है और फिर इसके बाद श्राया था। इसने लिखा है कि हिन्दुस्थान- वैशम्पायनकी रचना हुई। तब प्रश्न होता में एक लाख श्लोकोंका 'इलियड' है। है कि ये प्रन्थ कब बने ? यथार्थमें यह जिस प्रकार इलियड ग्रीक लोगोंका प्रश्न विकट है। इसका निर्णय करनेके | राष्ट्रीय महाकाव्य है, उसी प्रकार महा- लिये महाभारतके कुछ विशिष्ट भागोंका भारत हिन्दुस्थानका राष्ट्रीय महाकाव्य ही उपयोग हो सकता है। और उन है। इस यूनानी लेखकने यद्यपि महा- भागोका सम्बन्ध भारती-युद्धके साथ जा भारतका नाम नहीं दिया है, तथापि पहुँचता है । इस प्रश्नका विचार करने में इसमें सन्देह नहीं कि उक्त उल्लेखका अनुमानपर ही अधिक अवलम्बित होना सम्बन्ध महाभारतसे ही है। ऐसी शङ्का पड़ता है और विद्वान् लोग भी इस विषयमें नहीं की जा सकती कि यह उल्लेख रामा- भिन्न भिन्न अनुमान करते हैं। अतएव इस यणके सम्बन्धमें होगा; क्योंकि यद्यपि प्रश्नको अभी अलग छोड़कर, इस भागमें पहले प्रश्नका ही विचार किया जायगा। • उच्चकल्पके महाराज सर्वनाथके, सम्बत १६७ के, | लेख (गुप्त इन्स्क्रिपशन्स, भाग ३, पृष्ठ १३४) में कलचूरी महाभारतमें ही कहा है कि, प्रचलित ! सम्बत है। अर्थात् यह लेख १७+९७० - ३६७ शकका, महाभारतमें एक लाख श्लोक हैं । यद्यपि यानी सन ४४५ का है।