- महाभारतमीमांसा
इस प्रकार धर्म और नीतिको प्रधान हेतु नहीं । व्यास और वैशम्पायनके ग्रन्थों में रखनेका प्रयत्न, पूर्व अथवा पश्चिमके कुछ बहुत न्यूनाधिकता न होगी । और किसी महाकाव्यमें नहीं किया गया जान पड़ता है कि वैशम्पायनके ग्रन्थमें है। स्वयं व्यासजीने अपने शब्दोंसे भी २४००० श्लोक थे। मूल अन्धका नाम अपने ग्रन्थका यही तात्पर्य बतलाया है। 'जय' था । वैशम्पायनमे उसका नाम महाभारतके अन्तमें भारत-सावित्री भारत रखा। उसीने पहलेपहल भारत- नामक जो चार श्लोक हैं उनमें व्यासजी-संहिताका पठन किया था। श्राश्वलायम ने अपने ग्रन्थके इस रहस्यको प्रकट कर सूत्र में उसे भारताचार्य कहा गया है। दिया है। उनमेंसे एक लोक यह है:- कहते हैं कि भारतमें 100 कट श्लोक ऊर्ध्वबाहर्विरोम्येषनच कश्चिच्छणोति मे। है। इससे कुछ लोगोंका अनुमान है कि धर्मादर्थश्च कामश्च सधर्मः किं नसेव्यते॥ व्यास-कृत भारतके श्लोकोंकी यही संख्या अर्थात् “भुजा उठाकर और ज़ोरसे होगी; पर यह अनुमान ठीक नहीं है। चिल्लाकर मैं तुम सब लोगोंसे कह रहा व्यास-कृतभारतके श्लोकोंकी संख्याइससे हूँ, पर मेरी बात कोई नहीं सुनता। बहुत अधिक होनी चाहिये। व्यासजीने धर्मसे ही अर्थ और कामकी सिद्धि होती लगातार तीन वर्षनक उद्योग करके, है। फिर ऐसे धर्मका पालन तुम लोग युद्ध की समाप्तिके अनन्तर, अपने ग्रन्थकी क्यों नहीं करते ?” व्यासजीका यही रचना की । वैशम्पायनने उसे कुछ थोड़ा हार्दिक उपदेश इस ग्रन्थका परम तात्पर्य सा बढ़ा दिया और २४००० श्लोकोंका है और इसीसे सारे संसार में इस ग्रन्थकी ग्रन्थ बना दिया। और अन्त में सौतिने श्रेष्ठता प्रस्थापित होती है। उसीको एक लाख श्लोकोंका अन्य कर ____ यहाँतक "महाभारतके कर्ता के दिया। इतने बड़े ग्रन्थकी रचना करनेके विषय में विचार करते हुए, इन सब लिये सौतिके समयकी सनातनधर्मकी दशा बातोंका विस्तारसहित विवेचन किया हो प्रधान कारण है। सौतिके समय समा. गया है कि महाभारत-ग्रन्थ कितना बड़ा तन धर्म पर बौद्ध और जैन धर्मोके हमले है, उसका मूल भाग कौन सा और कितना हो रहे थे। सनातन धर्ममें भी उस समय है, मूल भागको वर्तमान स्वरूप कैसे अनेक मतमतान्तर प्रचलित थे और उनका प्राप्त हुआ और इस ग्रन्थके कर्ता कौन परस्पर विरोध हो रहा था। अतएव कौन हैं। अब इसी विषयका संक्षेपमें उस समय इस बातकी बहुत आवश्यकता सिंहावलोकन किया जायगा। महाभारत- थी कि छोटी छोटी सब गाथाओको में लगभग एक लाख श्लोक हैं। सम्भव | एकत्र करके और सब मतमतान्तरोंके नहीं कि इतनी बड़ी रचना एक ही कवि- विरोधको हटाकर किसी एक ही प्रन्थमें की हो। इससे यह पाया जाता है कि सनातन धर्मका उज्वल स्वरूप प्रकट इस ग्रन्थकी रचना एकसे अधिक कवियों | किया जाय । इस राष्ट्रीय कार्यको सौतिने ने की होगी । दो कर्त्ता तो ग्रन्थसे ही पूरा किया। ऐसा करते समय उसने स्पष्ट प्रकट होते हैं । वे व्यास और सौति सब प्रचलित दन्त-कथाओंको एकत्र है। व्यासकृत मूल भारतको पहले पहल किया और अन्य रीतिसे भी महाभारतमें वैशम्पायनने प्रसिद्ध किया है. इसलिये अनेक उपयोगी वातोका संग्रह कर नीम कर्ताओका होना मानने में कोई हर्ज दिया । सारांस, धर्म, नीति, तत्त्वज्ञान