पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६२९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • भगवद्गीता-विचार । ®

६०१ हनिवालने बैलोंके सीगोंमें मशाले बाँध- सिवा यदि कोई गति नहीं, तो उस पर शस्त्र कर रोमन लोगोंको धोखा दिया । यूरो-चलाना ही चाहिए । इसी न्यायसे श्री पीय महायुद्धके इतिहासमें भी ऐसे रामचन्द्रने तारकाको मारा था । भीष्मकी सैंकड़ों उदाहण मिलेंगे जिनमें इस प्रकार प्रतिक्षा थी कि मैं शिखण्डी पर शस्त्र नहीं शत्रु-सेनाको धोखा देकर जय प्राप्त की चलाऊँगा । यह अतिरेक ही है। इस गई है। परन्तु इससे भी विशिष्ट न्याय पागलपनसे यदि प्रतिपक्षने कोई फायदा इस बात पर लागू होता है। यदि वह उठा लिया हो तो अनुचित नहीं। द्वन्द्व हाईलेंडर सच बोलता, तो जनरल वुल्फ- युद्ध में ही यह नियम चल सकता है कि की समस्त सेना नष्ट हो जाती। इस एक मनुष्यके ऊपर अनेक लोग धावा दृष्टिसे उसका झूठ बोलना क्षम्य है। न करें: परन्तु अन्य प्रसङ्गों में यह नियम जनरल वुल्फके समान उस समय पांडव नहीं चलेगा। यदि ऐसा न होगा तो चढ़ाई करने नहीं जा रहे थे या फ्रेंच । संख्याके बलके कारण शत्रुको मारना कभी ब्रिटिशोंके साथ अधर्मसे नहीं लड़ते थे। न्याय्य न होगा। कौरवोंकी और ग्यारह इसके विरुद्ध, द्रोण पांडवों पर चढ़ाई अक्षौहिणी सेनाएँ थीं तो पाण्डवोकी तरफ करके अधर्मसे उनका संपूर्ण नाश करता केवल सात अक्षौहिणी । क्या इसे अधर्म था। अतएव यहाँ नीतिशास्त्र-वेत्ताओंको नहीं मानना होगा ? सारांश यह है कि, यही इन्साफ करना पड़ेगा कि उस समय भीष्मके वधके प्रसङ्गमें अधर्मका भास होता श्रीकृष्णने धर्मराजको झूठ बोलनेकी जो है; तथापि कहना पड़ेगा कि वस्तुतः वह सम्मति दी वह सर्वथा क्षम्य है। अधर्म नहीं था । सब तरहके सूक्ष्म विचार सदगुणोंका अतिरेक दोषयुक्त है। ने पाण्डवोंसे कट युद्ध करवाया वहाँ वहाँ १ करनेसे शात होगा कि जहाँ जहाँ श्रीकृष्ण- इस विषयका विचार एक और दृष्टि- युद्ध की रोतिकी दृष्टिसे कुछ भी अनुचित से किया जा सकता है । किसी बात- न था । उच्च नीतिको दृष्टिसे कहीं अधर्म- का अतिरेक करना दोषयुक्त होता है; का केवल भास था तो कहीं ऐसा दिखाई फिर वह अतिरेक चाहे सद्गुणोंका ही देगा कि अपवादक प्रसङ्गमें सर्वस्व-घात क्यों न हो। पाश्चात्योंकी एक कहावत है- आदि कारणोंके लिए जो अधर्मका अव- True virtue lies in the meanलम्ब किया गया सो क्षम्य था। परन्तु between two extremes | बड़ा दानी- यह ध्यानमें रखना चाहिए कि युद्ध तथा पन दिखाकर अपने बाल-बच्चोंको भूखों सर्वखघातादि कारणोंको छोड़ अन्य मारना नीतिकी रष्टिसे दुर्गुण ही है । इस प्रसङ्गोंमें अधर्मका अवलम्बन करना कभी प्रकारके अतिरेकका दुर्गुण महाभारके न्याय्य न होगा। इस मर्यादाका खयाल न कर्त्ताने तदन्तर्गत उदात्त व्यक्तियोंमें युक्ति- रहनेसे श्रीकृष्णके सम्बन्धमें भ्रम होता है से दिखाया है । किसी राजाके बुलाने और ऐसा जान पड़ता है कि श्रीकृष्ण पर इनकार न करके चूत खेलने जाना एक कपटी व्यक्तिथा । परन्तु वास्तविक धर्मराजका दुर्गुण ही है । यह उदात्त रूपसे विचार करने पर मालूम हो जायगा कल्पना है सही कि स्त्रीके ऊपर शस्त्र नहीं कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि परम धर्म चलाना चाहिए, परन्तु आततायी और सब के धर्मशास्त्रने तथा मन्वादि स्मृतियोंने भी जगत्को संताप देनेवाली स्त्रीको मारनेके अपवाद माने हैं, और ऐसे अपवादक ७६